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खून का नहीं, करुणा का रिश्ता: आशा बनीं ज्योति की जिंदगी की नयी वजह

कमांड अस्पताल चंडीमंदिर में हुआ पहला लाइव किडनी ट्रांसप्लांट
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ज्योति के जीवन की डोर थमने लगी थी, तभी आशा ने उसे अपने संकल्प से फिर से जोड़ा—एक किडनी के दान से जन्मा ऐसा रिश्ता, जो खून से नहीं, करुणा से बना। चंडीमंदिर स्थित कमांड अस्पताल, पंचकूला में दर्ज हुआ ऐसा ही एक ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण, जब 50 वर्षीय आशा देवी ने अपने दिवंगत पति की याद में 28 वर्षीय ज्योति बाला को किडनी देकर जीवनदान दिया। यह सेना के इस प्रतिष्ठित अस्पताल में किया गया पहला लाइव किडनी ट्रांसप्लांट है।

बिना किसी रक्त संबंध के, आशा और ज्योति के बीच वर्षों से जुड़ी आत्मीयता ने इस रिश्ते को ‘मां-बेटी’ जैसी गहराई दे दी। लंबे समय से गंभीर गुर्दा रोग से जूझ रहीं ज्योति अब सर्जरी के बाद तेजी से स्वस्थ हो रही हैं। आशा का यह निर्णय न केवल चिकित्सा जगत, बल्कि मानवीय संवेदना के स्तर पर भी प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

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जब अंग-संग्रहण केंद्र बना प्रत्यारोपण संस्थान

कमांड अस्पताल अब तक गैर-प्रतिरोपण अंग-संग्रहण केंद्र (एनटीओआरसी) के रूप में कार्यरत था और वर्ष 2024 में इसे राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) द्वारा ‘सर्वश्रेष्ठ एनटीओआरसी’ का सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। अब रोटो-उत्तर और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के तकनीकी मार्गदर्शन में यह अस्पताल एक सक्रिय प्रत्यारोपण केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है।

सेवा, नेतृत्व और संकल्प की जीत

पीजीआई चंडीगढ़ के चिकित्सा अधीक्षक व रोटो-उत्तर के नोडल अधिकारी डॉ. विपिन कौशल ने कहा कि यह केवल एक चिकित्सा प्रक्रिया नहीं, बल्कि सोच और सेवा की सफलता है। प्रत्यारोपण समन्वयक डॉ. (कर्नल) अनुराग गर्ग ने बताया कि जब से हमें अनुमति मिली, हमारी पूरी टीम इसी दिन के लिए समर्पित रही। यह सफलता हमारी साझा मेहनत और विश्वास का परिणाम है।

 

 

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