Medical Staff Shortage देश के टॉप मेडिकल संस्थानों में स्टाफ का संकट : हर तीसरा पद खाली, इलाज और पढ़ाई पर असर
देश के अग्रणी सरकारी मेडिकल संस्थानों में डॉक्टरों और स्टाफ की भारी कमी अब एक गंभीर समस्या बन चुकी है। संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के मुताबिक, एम्स, पीजीआईएमईआर और जिपमर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में हजारों फैकल्टी और नॉन-फैकल्टी पद वर्षों से खाली पड़े हैं। इससे न केवल मरीजों की देखभाल प्रभावित हो रही है, बल्कि मेडिकल छात्रों की पढ़ाई और ट्रेनिंग भी प्रभावित हो रही है।
कितनी बड़ी है यह कमी?
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देशभर के 25 प्रमुख संस्थानों में 9,618 फैकल्टी पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 3,657 पद (करीब 38 फीसदी) खाली हैं।
वहीं, 95,387 नॉन-फैकल्टी पदों में से 25,358 पद (26.6 फीसदी) रिक्त हैं, जिनमें नर्सिंग, तकनीकी और प्रशासनिक स्टाफ शामिल हैं।
प्रमुख संस्थानों की स्थिति
- एम्स दिल्ली: 462 फैकल्टी, 3,106 नॉन-फैकल्टी पद खाली
- पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ : कुल 1,874 पद रिक्त
- एम्स मडुरै : केवल 1 फैकल्टी नियुक्त, 134 पद खाली
- एम्स बठिंडा : 79 फैकल्टी, 950 नॉन-फैकल्टी पद रिक्त
- एम्स पटना : 1,289 नॉन-फैकल्टी पद खाली
- एम्स जोधपुर : 186 फैकल्टी पद रिक्त
- एम्स ऋषिकेश : 94 फैकल्टी, 1,194 नॉन-फैकल्टी पद खाली
- एम्स भोपाल: 119 फैकल्टी, 1,177 नॉन-फैकल्टी पद रिक्त
- जिपमर पुडुचेरी: 124 फैकल्टी, 738 नॉन-फैकल्टी पद खाली
- एम्स दरभंगा और रेवाड़ी : अब तक कोई नियुक्ति नहीं
- एम्स अवंतीपोरा (जेएंडके ): 250 स्वीकृत पदों में से केवल 2 पद भरे गए
डॉक्टरों और स्टाफ की कमी के चलते मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा। जांच में देरी, सुविधाओं का अभाव और लंबा इंतजार अब आम हो चला है। साथ ही मेडिकल छात्रों को पर्याप्त क्लीनिकल ट्रेनिंग नहीं मिल रही।
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार ने एम्स और मेडिकल कॉलेजों की संख्या तो बढ़ा दी है, लेकिन पर्याप्त नियुक्तियां न होने से ये संस्थान केवल इमारतों तक सीमित रह गए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि भर्ती प्रक्रिया जारी है, लेकिन ज़मीनी हालात इसके उलट कहानी बयां करते हैं।