जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 20 जुलाई
पंजाब विश्वविद्यालय की डॉ. नैना ग्रेवाल ने 17-20 जुलाई को जर्मनी के हीडलबर्ग में आयोजित यूरोपीय आणविक जीव विज्ञान प्रयोगशालाओं के सम्मेलन में अंगूर की फसल में लगने वाली फफूंद पर अपना शोध कार्य प्रस्तुत किया। नैना अपना पीएचडी का शोध-कार्य जैव प्रौद्योगिकी विभाग के चेयरपर्सन और डीएसटी सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के कनवीनर प्रो. कश्मीर सिंह के मार्गदर्शन में कर रही हैं। उनकी पीएचडी ग्रेपवाइन फंगस पाउडर फफूंदी के पौधे-कवक अंतःक्रियाओं में प्रतिरोधी जीनों के साथ-साथ उनके स्यूडोजेन के बीच परस्पर क्रिया का विश्लेषण करने पर है। नैना वर्तमान में सिंथेटिक जीव विज्ञान की कृत्रिम जीन पुनरुत्थान तकनीकों के माध्यम से इन मृत जीन तत्वों को जीवन में लाने की संभावना पर काम कर रही हैं। उनका मानना है कि ये स्यूडोजेन नए जीन को जन्म देने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं जो पौधों में फंगल संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता प्रदान करते हैं। यह शोध अध्ययन पौधों में प्रतिरोध जीन के स्यूडोजेन पर अब तक का पहला अध्ययन है जिसे रोगजनकों के खिलाफ पौधों की रक्षा प्रतिक्रिया को चलाने में महत्वपूर्ण माना जाता है।
सफेद पाउडर, डाउनी का तोड़ निकाला
दरअसल भारत में अंगूर की फसल पर दो तरह की बीमारियां लगती हैं। एक तो व्हाइट पाउडर (सफेद पाउडर) जो आमतौर पर उत्तर भारत में होने वाले अंगूरों में पायी जाती हैं और दूसरा डाउनी जिससे अंगूर काले पड़ने लगते हैं, दक्षिण भारत में पैदा होने वाली फसल में लगती है। नैना अपने मेंटर कश्मीर सिंह की देखरेख में बिना किसी दवा के छिड़काव के अंगूर के जीन से ही इसका उपचार यानी तोड़ निकाला है और उन्होंने कुछ ऐसे जीन की पहचान की है जिसमें इन दोनों बीमारियों से लड़ने की क्षमता है। इस क्षेत्र में अंगूर का कोई फील्ड न होने के कारण शोधार्थी नैना को पुणे जाना पड़ता है और वहां फील्ड ट्रायल करती हैं।