आयुर्वेद और आधुनिक जीवनशैली का संगम बनी हर्बल वर्कशॉप
सेंट स्टीफंस स्कूल, सेक्टर 45-बी चंडीगढ़ में शनिवार को ‘हर्बल लिटरेसी वर्कशॉप’ का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य हर्बल पौधों के औषधीय उपयोग, संरक्षण और उनकी वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा देना था। स्कूल के प्रिंसिपल जॉन ज़ेवियर ने कहा कि...
सेंट स्टीफंस स्कूल, सेक्टर 45-बी चंडीगढ़ में शनिवार को ‘हर्बल लिटरेसी वर्कशॉप’ का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य हर्बल पौधों के औषधीय उपयोग, संरक्षण और उनकी वैज्ञानिक समझ को बढ़ावा देना था।
स्कूल के प्रिंसिपल जॉन ज़ेवियर ने कहा कि आज ‘हर्बल लिटरेसी’ केवल जानकारी नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बननी चाहिए।
उन्होंने हर्बल संसाधनों के संरक्षण और उनके विवेकपूर्ण उपयोग को टिकाऊ भविष्य के लिए आवश्यक बताया।
आयुर्वेदिक परंपराओं के विशेषज्ञ डॉ. राजीव कपिला ने कहा कि आयुर्वेद भारतीय ज्ञान का वह खजाना है, जो स्वास्थ्य को प्रकृति से जोड़ता है। उन्होंने वात, पित्त और कफ जैसे तीन दोषों की अवधारणा को सरल शब्दों में समझाया और बताया कि इनका संतुलन ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। उन्होंने गिलोय, नीम, शतावरी, अमरबेल और शिवलिंगी जैसी जड़ी-बूटियों के औषधीय गुणों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भू-आंवला पीलिया के उपचार में उपयोगी है, करेला प्राकृतिक इंसुलिन का कार्य करता है, जबकि मोरिंगा (सहजन) को उन्होंने ‘ग्रीन मल्टीविटामिन’ बताया।
महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए अशोक वृक्ष और शिवलिंगी बीज को महत्वपूर्ण बताया। डॉ. कपिला ने कहा कि आधुनिक रसोईघर एक ‘आयुर्वेदिक लैब’ बन सकता है, जहां मसालों, अनाज और हर्बल सामग्रियों का सही उपयोग शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। उन्होंने खानपान में अनुशासन और मौसमी फलों-सब्जियों के सेवन को सर्वोत्तम आयुर्वेदिक अभ्यास बताया।
स्कूल के हर्बल एजुकेटर ओम प्रकाश ने हरसिंगार, मसाला तुलसी, वैजयंती और सर्पगंधा जैसे पौधों पर जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बच्चों को इन पौधों की पहचान और उपयोग सिखाना ‘हर्बल लिटरेसी’ की असली शुरुआत है। वर्कशॉप में 100 फीसदी हर्बल लिटरेसी मिशन के तहत स्कूल के 60 शिक्षकों ने भाग लिया। इस अवसर पर सीनियर एक्टिविटीज़ कोऑर्डिनेटर सुमन मल्होत्रा, सीमा गुप्ता, हरजीत कौर और पूजा शर्मा समेत अन्य स्टाफ सदस्य उपस्थित रहे।

