Heart Failure Alert इलाज में देरी हार्ट फेल्योर की सबसे बड़ी वजह, समय पर हस्तक्षेप से बच सकती हैं जानें
जीरकपुर में 16वीं ग्लोबल कार्डियोमर्सन कॉन्फ्रेंस में मंथन
दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों के पीछे इलाज में देरी सबसे बड़ा कारण बन रही है। जीरकपुर में आयोजित दो दिवसीय 16वें ग्लोबल कार्डियोमर्सन कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने एक स्वर में कहा कि दिल का दौरा पड़ने के बाद शुरुआती महत्वपूर्ण समय में अस्पताल न पहुंच पाना हार्ट फेल्योर की मुख्य वजह है, जिससे अपरिवर्तनीय मायोकार्डियल क्षति और मृत्यु दर तेजी से बढ़ती है।
‘न्यू फ्रंटियर इन हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांट’ थीम पर आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत, अमेरिका और जापान से तीन सौ से अधिक कार्डियोलॉजिस्ट, कार्डियक सर्जन, पल्मोनोलॉजिस्ट और इंटेंसिविस्ट शामिल हुए। सम्मेलन का आयोजन सोसाइटी फॉर हार्ट फेल्योर एंड ट्रांसप्लांटेशन (एसएचएफटी) और इंडियन एसोसिएशन ऑफ कार्डियोवैस्कुलर थोरैसिक सर्जन (आईएसीटीएस) के सहयोग से किया गया।
कॉन्फ्रेंस के ग्लोबल चेयरमैन डॉ. दीपक पुरी ने बताया कि दिल का दौरा पड़ने के बाद यदि समय पर संपूर्ण पुनरुद्धार नहीं हो पाता, तो मरीज तेजी से हार्ट फेल्योर की ओर बढ़ता है। उन्होंने ढाई दशक से अधिक के अनुभव के आधार पर कहा कि अनुकूलित दवाइयां, धड़कते दिल पर समय पर ऑफ पंप पुनरुद्धार, सतर्क पोस्ट ऑपरेटिव देखभाल और दीर्घकालिक संरचित फॉलोअप से मरीजों के नतीजों में उल्लेखनीय सुधार संभव है।
दूसरे दिन शैक्षणिक सत्रों की शुरुआत कार्डियोजेनिक शॉक पर केंद्रित चर्चा से हुई, जिसका संचालन डॉ. जैकब अब्राहम और डॉ. नवीन अग्रवाल ने किया। सत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि सही समय पर सटीक मेडिकल सपोर्ट ही मरीज की जान बचाने में निर्णायक भूमिका निभाता है।
डॉ. पुरी ने यह भी कहा कि भारत में अधिकांश मरीज तीव्र या पुरानी कोरोनरी धमनी रोग के बाद इलाज में देरी के कारण इस्केमिक हार्ट फेल्योर की गंभीर अवस्था में पहुंचते हैं। सीमित प्रत्यारोपण सुविधाएं, लॉजिस्टिक चुनौतियां और दाता दिलों की कमी के चलते कई मरीज अंतिम चरण की हृदय विफलता तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने कोविड उन्नीस महामारी के बाद फेफड़ा प्रत्यारोपण की आवश्यकता में तेजी से हुई वृद्धि को भी गंभीर चिंता का विषय बताया, जबकि यह सुविधा देश में फिलहाल कुछ ही केंद्रों तक सीमित है।
सम्मेलन के अन्य सत्रों में डॉ. राजेश विजयवर्गीय, डॉ. अंकुर आहूजा और डॉ. एचके बाली ने पारंपरिक और उभरती नैदानिक रणनीतियों पर महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। एसएचएफटी के अध्यक्ष डॉ. जाबिर और आईएसीटीएस के अध्यक्ष डॉ. मनोज दुरईराज की उपस्थिति ने कॉन्फ्रेंस को विशेष महत्व दिया।
उल्लेखनीय है कि कार्डियोमर्सन एक वैश्विक समूह है, जिसकी स्थापना 2011 में व्यापक हृदय देखभाल के लिए एकीकृत दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से की गई थी। इसका लक्ष्य हृदय और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के समग्र प्रबंधन को लेकर जागरूकता और वैज्ञानिक समझ को मजबूत करना है।

