50 लाख की जल्दबाजी, 35 साल की नौकरी पर भारी
एक चूक, एक हस्ताक्षर और करीब 50 लाख की पेमेंट। यही बना हरियाणा के एक वरिष्ठ अधिकारी के करियर का अंतिम अध्याय। अश्वनी कुमार, जिन्होंने वर्षों तक प्रशासनिक सेवाओं में काम किया, अब भ्रष्टाचार के आरोप में जबरन सेवानिवृत्त कर दिए गए हैं। यह घटना प्रशासनिक हलकों के लिए भी किसी चेतावनी से कम नहीं है। प्रदेश की नायब सरकार ने इस कदम के जरिये पूरी ब्यूरोक्रेसी और कर्मचारियों को सख्त संदेश देने की कोशिश की है।
सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस ही उसकी नीति है। 26 जून को कैबिनेट में लिया गया यह फैसला, अब सभी अधिकारियों के लिए एक उदाहरण बन गया है। सोनीपत की चीनी मिल में हुआ निर्णय अब अश्विनी कुमार की ‘कड़वी विदाई’ का कारण बन गया है। 50 लाख की संदिग्ध पेमेंट, एमडी की चेतावनी के बावजूद एक प्राइवेट कंपनी को फायदा पहुंचाने की जल्दी का नतीजा यह निकला कि नौकरी जाती रही।
फरवरी-2023 में जब अश्वनी कुमार को पहला नोटिस भेजा गया तक उन्हें अंदाज़ा भी नहीं होगा कि इसका अंत अनिवार्य सेवानिवृत्ति पर होगा। लेकिन सरकार की प्रक्रिया भले ही धीमी रही हो लेकिन सेवानिवृत्त आईएएस की रिपोर्ट, हरियाणा लोकसेवा आयोग की सहमति और कैबिनेट की मंजूरी ने अश्विनी कुमार पर लगे आरोपों पर मुहर लगा दी। जबरन सेवानिवृत्ति का नोटिफिकेशन सरकार ने जारी कर दिया है।
अधिसूचना की कॉपी सोमवार की रात मीडिया में आई। इस संबंध में सरकार द्वारा 26 जून को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया था। इसे अब लागू किया है। अश्वनी कुमार पर आरोप हैं कि सोनीपत शुगर मिल में एमडी (मैनेजिंग डायरेक्टर) रहते हुए उन्होंने 12 जून, 2020 को महाराष्ट्र की कंपनी बाउवेट इंजीनियरिंग लिमिटेड को लगभग 50 लाख रुपए दे दिए। जबकि शुगरफेड के एमडी ने काम ठीक नहीं होने पर पेमेंट रोकने को कहा था। इस कार्रवाई से पहले सरकार ने हरियाणा सिविल सेवा नियमों के नियम-7 के तहत फरवरी-2023 में अश्वनी कुमार को भेजे गए नोटिस में कहा गया कि उन्होंने अपनी सरकारी पद की ताकत का गलत इस्तेमाल किया और एक प्राइवेट कंपनी को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए सेवानिवृत्त आईएएस कृष्ण लाल की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन किया था। कमेटी ने भी अश्वनी कुमार को दोषी ठहराया था।