हरप्रीत की आखिरी मुस्कान बनी तीन जिंदगियों की नई सुबह
- फतेहगढ़ साहिब की 17 साल की बेटी ने अंगदान कर रच दी मानवता की मिसाल
विवेक शर्मा/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 21 अप्रैल।
जिंदगी ने जब एक परिवार से उनकी सबसे बड़ी खुशी छीन ली, तब उन्होंने दूसरों के लिए जिंदगी की राहें खोल दीं।
फतेहगढ़ साहिब के बसी पठाना मोहल्ले की 17 वर्षीय हरप्रीत कौर, जो बीसीए की पढ़ाई कर रही थी, एक दर्दनाक हादसे में घायल हो गई। ऊंचाई से गिरने के बाद अस्पतालों में जिंदगी की जंग लड़ते हुए आखिरकार पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ में 20 अप्रैल को ब्रेन डेड घोषित कर दी गई।
लेकिन जहां एक तरफ घर में मातम पसरा था, वहीं पिता सुरिंदर सिंह ने ऐसा फैसला लिया, जो हजारों के दिलों को छू गया — उन्होंने अपनी बेटी के सभी अंग दान करने का निश्चय किया।
हरप्रीत की आखिरी सांसों ने तीन लोगों की जिंदगी में नई सुबह ला दी
51 वर्षीय मोहाली निवासी को उनका लिवर प्रतिरोपित किया गया।
सोलन की 25 वर्षीय युवती को एक किडनी और पैंक्रियाज मिले।
चंडीगढ़ के 36 वर्षीय युवक को दूसरी किडनी लगाई गई।
तीनों गंभीर मरीज अब जिंदगी की नई दौड़ में शामिल हो गए हैं, सिर्फ हरप्रीत और उनके परिवार के फैसले की बदौलत।
पिता सुरिंदर सिंह की आंखों में आंसू थे, लेकिन आवाज में गर्व था। उन्होंने कहा, "हरप्रीत हमारी दुनिया थी। उसे खोना असहनीय है, पर ये जानकर दिल को राहत मिलती है कि उसकी वजह से तीन घरों में अब खुशियां लौट आई हैं। वह हमेशा दूसरों की मदद करने वाली थी, और यही वह भी चाहती।"
पीजीआईएमईआर के निदेशक प्रो. विवेक लाल ने परिवार के इस फैसले को "मानवता की मिसाल" बताते हुए कहा,"किसी के अपने को खोने के गहरे दुख में भी दूसरों के लिए रोशनी बनने का साहस विरले ही दिखता है। हरप्रीत की यह 'जीवन ज्योति' हमेशा प्रेरणा देती रहेगी।"
लिवर ट्रांसप्लांट करने वाले प्रो. टी.डी. यादव ने कहा कि यह एक बेहद जटिल प्रक्रिया थी, लेकिन जब किसी को दोबारा जीवन मिलता है तो हर कठिनाई सार्थक लगती है।
रोटो-पीजीआईएमईआर के नोडल अधिकारी प्रो. विपिन कौशल ने भी परिवार की सराहना करते हुए कहा,हरप्रीत का अंगदान केवल तीन जिंदगियां नहीं बचा रहा, बल्कि अनगिनत औरों को भी इस नेक पहल के लिए प्रेरित करेगा।"
सभी अंग पीजीआई में ही प्रतिरोपित किए गए, जिससे मरीजों को बेहतर देखभाल और नई जिंदगी का भरोसा मिला।