Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

Harjit Kaur Deportation : हरजीत कौर की डिटेंशन सेंटर की कहानी, बोलीं- मुझे हथकड़ी लगाई गई, यातना मिली

परिवार से अमेरिका में मिलने की उम्मीद, रिश्तेदार ने बताया हाल

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

अमेरिका में रह रहे हरजीत कौर के पोते-पोती बार-बार उन्हें फोन कर पूछ रहे हैं कि क्या उनके पास सोने के लिए बिस्तर है। पहनने के लिए कपड़े हैं, क्या उन्हें सुबह, दोपहर और रात का खाना मिला? क्योंकि 73 साल की यह दादी एक क्रूर विडंबना का शिकार होकर बेघर हो गई हैं।

कौर और उनके दो छोटे बेटे 1991 में बेहतर जीवन की तलाश में अमेरिका के कैलिफोर्निया पहुंचे थे। अब 22 सितंबर को उन्हें भारत वापस भेज दिया गया। उनका घर, उनके बेटे और पोते-पोतियां सभी अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को बे एरिया स्थित हरक्यूलिस शहर में रह गए हैं, जहां वह साड़ी की दुकान में काम करती थीं। फिलहाल वह मोहाली में अपने एक दूर के देवर के पास रह रही हैं, जिन्होंने उन्हें सहारा और आश्रय दिया है।

Advertisement

हरजीत अब अकेली रह गई हैं, एक ऐसे देश में जो कभी उनका घर था। उनके पति, माता–पिता और बड़े भाई सभी गुजर चुके हैं।

पंजाब के पट्टी में उनका सिर्फ एक छोटा भाई है, लेकिन हरजीत को यकीन नहीं कि वह वहां कितने समय तक रह पाएंगी। उन्होंने द ट्रिब्यून से कहा कि "मैं पंजाब सरकार और केंद्र सरकार से आग्रह करती हूं कि मुझे अमेरिका में अपने परिवार से मिलवाया जाए।" अमेरिकी सरकार से मिले कठोर व्यवहार के बावजूद उन्हें उम्मीद है कि शायद सरकार का मन बदल जाए और उन्हें परिवार से मिलने दिया जाए। हालांकि, मोहाली में रहने वाले उनके रिश्तेदार कुलवंत सिंह ने कहा कि "वह अभी कुछ कह नहीं रही। सिर्फ दो-तीन दिन हुए हैं, वह अब भी सदमे में हैं।"

कौर ने अमेरिका में शरण लेने के लिए आवेदन किया था, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। 8 सितंबर को जब वह सैन फ्रांसिस्को में इमिग्रेशन कार्यालय में रिपोर्ट करने गईं, तो अमेरिकी इमिग्रेशन और कस्टम्स प्रवर्तन विभाग ने उन्हें अचानक गिरफ्तार कर लिया। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि हरजीत ने पिछले कई दशकों में अपने सभी कानूनी विकल्प समाप्त कर दिए थे और 2005 में एक इमिग्रेशन जज ने उनके निर्वासन का आदेश दे दिया था।

हरजीत ने कहा कि "मैं एजेंट के जरिए अमेरिका गई थी और मेरे पास पासपोर्ट भी नहीं था।"

अमेरिका में पंजाबी प्रवासी उन्हें प्यार से ग्रैंडमा बुलाते हैं और अब उनके लिए आवाज उठा रहे हैं। हरजीत ने बताया कि उन्हें हथकड़ी लगाकर डिटेंशन सेंटर ले जाया गया और वहां उन्होंने आठ भयानक दिन गुजारे। "मेरे घुटनों में दर्द रहता है, इसलिए गाड़ी में चढ़ नहीं पा रही थी और हाथ बंधे थे। तब एक अफसर ने मेरी हथकड़ी खोली ताकि मैं गाड़ी में चढ़ सकूं। डिटेंशन सेंटर में खाना बहुत खराब था- ठंडी ब्रेड, चीज़ और टर्की। मैं शाकाहारी हूं, इसलिए ठीक से खा भी नहीं पाई। वहां सोने के लिए बस एल्युमिनियम फॉयल, दो चादरें थीं, गद्दा नहीं। इतनी ठंड थी कि नींद नहीं आती थी। करीब 100 महिलाएं वहां थीं।

उनमें से कुछ ने मुझ पर दया करके कपड़े दिए ताकि ठंड से बच सकूं। मैंने बार–बार दवाइयों के लिए कहा, लेकिन मुझे दवाइयां नहीं मिलीं। मुझे घुटनों का दर्द, माइग्रेन, ब्लड प्रेशर और दर्द की गोलियां लेनी पड़ती हैं," उन्होंने अपनी दर्दनाक कहानी सुनाई। 73 वर्षीय हरजीत ने बताया कि गिरफ्तारी से लेकर दिल्ली एयरपोर्ट छोड़ने तक उन्हें नहाने की इजाजत नहीं दी गई। जेल वाले कपड़े दिए गए, जिन्हें उन्होंने दिल्ली में नहाने के बाद बदला।

वह अब भी सदमे में हैं और नहीं जानतीं कि उनके जीवन में आगे क्या होगा। फिलहाल वह मोहाली में अपने वृद्ध देवर कुलवंत सिंह के पास रह रही हैं, लेकिन भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं। पिछले दो-तीन दिनों से मैं ठीक से सो नहीं पा रही। मेरे पोते–पोती पूछते रहते हैं कि क्या मेरे पास यहां सोने का बिस्तर है या नहीं। क्या मेरे पास पहनने के लिए कपड़े हैं। मेरा दिमाग अब तक समझ नहीं पा रहा कि मैं अब आगे क्या करूं।

Advertisement
×