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दादा के पदचिन्हों पर पोता रोहतक में

हरियाणा में रैलियां बदलती रही हैं सियासी समीकरण
देवीलाल
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हरियाणा की राजनीति में ताऊ देवीलाल सिर्फ एक नेता का नाम नहीं बल्कि किसान आंदोलन और सामाजिक न्याय का पर्याय रहे हैं। उनकी पहचान किसानों के मसीहा और जननायक की रही, जिनकी गूंज हरियाणा की सीमाओं से आगे राजस्थान, पंजाब, यूपी यहां तक की साउथ तक में सुनाई देती थी। लेकिन रोहतक की राजनीति से उनका रिश्ता हमेशा पेचीदा रहा।

यही वजह है कि 25 सितंबर को रोहतक में होने वाली इनेलो की रैली को केवल श्रद्धांजलि का आयोजन न मानकर, देवीलाल की विरासत और रोहतक की राजनीति के बीच पुराने समीकरणों को जोड़ने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। 1989 के लोकसभा चुनाव में ताऊ देवीलाल ने हरियाणा की रोहतक, राजस्थान की सीकर और पंजाब की फिरोजपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा।

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उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि वे रोहतक और सीकर, दोनों सीटों से विजयी रहे। लेकिन उन्होंने सदस्यता सीकर से बरकरार रखी और रोहतक से इस्तीफा दे दिया। उस दौर में यह फैसला रोहतक के मतदाताओं के लिए निराशाजनक साबित हुआ। धीरे-धीरे राजनीतिक हलकों में यह प्रचार जोर पकड़ गया कि देवीलाल प्रदेश की राजनीति को लेकर संजीदा नहीं हैं।

इनेलो सुप्रीमो अभय चौटाला ने ताऊ की जयंती पर रोहतक को आयोजन स्थल चुनकर राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की है। यह कदम केवल दादा को श्रद्धांजलि अर्पित करने का नहीं बल्कि खोई हुई सियासी जमीन तलाशने का प्रयास है। अभय के लिए यह मौका अतीत की गलतियों को सुधारने का भी है। इस रैली में सिर्फ इनेलो कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि अन्य दलों से जुड़े नेता भी आकर्षित हो रहे हैं। पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रो़ संपत्त सिंह ने मंच साझा करने का ऐलान किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री चौ़ बीरेंद्र सिंह भी अतीत में इनेलो के मंच पर दिख चुके हैं। वहीं, हालिया दिनों में अभय चौटाला की मुलाकात पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से भी चर्चा का विषय बनी। राजनीति में धनखड़ को लाने का श्रेय स्वयं देवीलाल को जाता है। ऐसे में यदि वे रोहतक रैली में पहुंचे तो यह इनेलो के लिए प्रतीकात्मक और राजनीतिक, दोनों स्तर पर बड़ा संदेश होगा। नतीजतन, रोहतक से उन्हें लगातार तीन चुनावों - 1991, 1996 और 1998 में कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों हार का सामना करना पड़ा। विडंबना यह रही कि पूरे उत्तर भारत में किसान नेता के रूप में उनकी गूंज थी, लेकिन हरियाणा की राजनीति के ‘पावर सेंटर’ माने जाने वाले रोहतक में वे लगातार असफल रहे। यही राजनीति लम्बे समय तक इनेलो की कमजोरी मानी जाती रही। हालांकि इसके बाद इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला का इस बेल्ट में प्रभाव भी देखने को मिला। धीरपाल सिंह, बलवंत सिंह मायना, बाली पहलवान व नफे सिंह राठी सरीखे इनेलो के कई नामचीन चेहरे इस क्षेत्र से विधानसभा चुनाव जीतते रहे।

इस बेल्ट से राजनीति ने पलटी उस समय मारी जब छह वर्षों के लगातार शासन के बाद 2005 के विधानसभा चुनावों में चौटाला की इनेलो को बुरी शिकस्त झेलनी पड़ी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद देशवाली बेल्ट ने हुड्डा को ही अपना नेता मान लिया। बेशक, इनेलो की कोशिशें जारी रही लेकिन आशाजनक नतीजे नहीं मिल सके। अब चूंकि कांग्रेस लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार चुकी है। ऐसे में इनेलो को देशवाली बेल्ट में अपने लिए पॉजिटिव लहरें दिख रही हैं।

बहरहाल, रोहतक की यह रैली सिर्फ ताऊ देवीलाल की जयंती का उत्सव नहीं, बल्कि हरियाणा की राजनीति में एक नई रणनीति है। अगर अभय चौटाला का दांव सफल रहा, तो इनेलो अपनी खोई सियासी जमीन दोबारा पा सकती है और 2029 तक इनेलो प्रदेश की राजनीति में निर्णायक ताकत बन सकती है। लेकिन अगर यह कोशिश नाकाम रही, तो यह एक बार फिर साबित करेगा कि रोहतक, देवीलाल और उनकी राजनीति के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है।

-इनेलो की वापसी की कोशिश

पिछले एक दशक में इनेलो टूट-फूट और हार के लंबे दौर से गुजरी है। जजपा के अलग होने से पार्टी को गहरी चोट पहुंची। लेकिन अब अभय चौटाला देवीलाल की विरासत को फिर से केंद्र में रखकर नई राजनीतिक धारा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। रोहतक रैली को इसी सोच की शुरुआत माना जा रहा है। अभय की रणनीति साफ है - रोहतक, सोनीपत और झज्जर की ‘देशवाली बेल्ट’ को टारगेट करना, जहां जाट वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। भाजपा और कांग्रेस के बीच बने इस समीकरण में इनेलो तीसरे विकल्प के रूप में जगह बनाना चाहती है।

-जजपा पर दबाव

जननायक जनता पार्टी (जजपा), जो इनेलो से ही निकली थी, खुद को देवीलाल की असली राजनीतिक विरासत बताती है। लेकिन इस रैली के जरिए इनेलो यह जताना चाहती है कि ताऊ की असली राजनीति उसी के पास है। यही वजह है कि जजपा पर दबाव बढ़ना तय है। जनता की नजर में देवीलाल का नाम और उनकी पहचान इनेलो से ज्यादा गहराई से जुड़ी मानी जाती है।

-भीड़ और बड़े चेहरे जीत का पैमाना

25 सितंबर की रैली में उमड़ने वाली भीड़ और मंच पर मौजूद बड़े चेहरे इस आयोजन की सफलता तय करेंगे। यदि बड़ी भीड़ जुटती है और अन्य दलों के दिग्गज नेता मंच साझा करते हैं, तो यह संदेश जाएगा कि ताऊ देवीलाल की विरासत आज भी हरियाणा की राजनीति में प्रासंगिक है। साथ ही, इनेलो को भविष्य की राजनीति का खाका तैयार करने का मौका मिलेगा।

-देशवाली बेल्ट की भूमिका

रोहतक, सोनीपत और झज्जर की यह बेल्ट हमेशा हरियाणा की सत्ता के केंद्र में रही है। यहां से बादली के चौ़ धीरपाल सिंह, झज्जर से कांता देवी व दरियाव सिंह राजौरा, बहादुरगढ़ के स्व. नफे सिंह राठी, हसनगढ़ के बलवंत सिंह मायना, महम के बाली पहलवान, राई से सूरजमल आंतिल, बरोदा से रमेश खटक व रामफल चिढ़ाना, रोहट (अब खरखौदा) के पदम सिंह दहिया, गोहाना से रामकुमार सैनी जैसे नेताओं ने अपनी छाप छोड़ी है।

-2029 की तैयारियों का रोडमैप

भले ही 2029 के विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन इनेलो ने तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी की कोशिश है कि खोए हुए जनाधार को वापस हासिल किया जाए और खुद को भाजपा-कांग्रेस के विकल्प के रूप में स्थापित किया जाए। अभय चौटाला का लक्ष्य साफ है - जाट वोट बैंक को साधकर तीसरी सियासी ताकत के तौर पर उभरना है।

 

 

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