पंजाब यूनिवर्सिटी में गवर्नेंस सुधार समय की जरूरत : प्रो. ग्रोवर
पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक ढांचे यानी सीनेट-सिंडिकेट में रिफार्म्स किया जाना वक्त की जरूरत है। पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने अपने कार्यकाल के दौरान 2016-17 में प्रशासनिक ढांचे (सीनेट-सिंडिकेट) में रिफार्म्स की बात उठायी थी। 2016 में सीनेट मीटिंग में दिये गये उनके वक्तव्य का हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर फंड नहीं मिले तो जनवरी के बाद वेतन देना मुश्किल हो जायेगा और पीयू तो ताला लगाना पड़ेगा और साथ ही सीनेट-सिंडिकेट को लेकर कुछ तल्ख टिप्पणियां की थी।
इसके बाद हाईकोर्ट के जज महेश ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखी जिसे बाद में पीआईएल मानकर कुलपति से इसके बारे में पूछा गया था। हाईकोर्ट ने पीयू के फंड की तो केंद्र से व्यवस्था करा दी थी मगर प्रशासनिक सुधारों वाला हिस्सा इसके बाद से आज तक लंबित ही है। प्रो. अरुण ग्रोवर का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि हाईकोर्ट उस पीआईएल के दूसरे हिस्से पर भी कार्यवाही करे। उन्होंने बताया कि तत्कालीन पूटा प्रधान प्रो. प्रोमिला पाठक ने रिफार्म्स को लेकर पूटा की ओर से एक ज्ञापन दिया था जिसमें गवर्नेंस रिफॉर्म्स से जुड़े कई ठोस सुझाव दिए गए थे। इन दस्तावेज़ों के अनुसार पीयू एक्ट (1947) भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम (1904) का परिवर्तित रूप है, जिसके तहत ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी 1 अक्तूबर 1947 को अस्तित्व में आई थी। बाद में इसका नाम 26 जनवरी 1950 को बदलकर पंजाब यूनिवर्सिटी रखा गया और 1966 में पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत इसका नियंत्रण पंजाब सरकार से केंद्र के गृह मंत्रालय को सौंप दिया गया।
सिंडिकेट को कहा गया है ‘सरकार’
पीयू कैलेंडर के अनुसार, 18 सदस्यीय सिंडिकेट को विश्वविद्यालय की ‘सरकार’ कहा गया है। इसमें कुलपति, पंजाब और यूटी के डीपीआई (कॉलेजिज़) पदेन सदस्य होते हैं, जबकि बाकी 15 सदस्य सीनेट के निर्वाचित प्रतिनिधि होते हैं। सीनेट का कार्यकाल चार वर्ष का होता है, और किसी सदस्य के दोबारा चुने जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। सुझाव दिया गया था कि किसी भी सीनेटर को केवल एक फैकल्टी में ही मतदान का अधिकार दिया जाए। दूसरा, सिंडिकेट का कार्यकाल दो वर्ष का किया जाये। एक अन्य सुझाव था कि सीनेट सदस्यों का चुनाव अंत में हो। इसके अतिरिक्त मतदाता सूची का सत्यापन हो।
गृह मंत्रालय से संशोधन की अपेक्षा
दस्तावेज़ में सुझाव दिया गया है कि इन बदलावों को लागू करने के लिए केंद्र के गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचना जारी की जाए। साथ ही पीयू कैलेंडर में संशोधन कर डीन यूनिवर्सिटी इंस्ट्रक्शन (डीयूआई) को पदेन सदस्य के रूप में शामिल करने की सिफारिश भी की गई है। इन सुधारों का उद्देश्य विश्वविद्यालय के चुनावी ढांचे को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बनाना बताया गया है, ताकि गवर्नेंस पर लंबे समय से बने गुटीय प्रभावों को समाप्त किया जा सके।
