मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

पूर्व कुलपतियों-शिक्षाविदों ने सीनेट में सुधारों को बताया ‘ऐतिहासिक और दूरदर्शी कदम’

जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू चंडीगढ़, 2 नवंबर पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट के पुनर्गठन संबंधी केंद्र सरकार की हालिया अधिसूचना को शिक्षाविदों, पूर्व कुलपतियों और विशेषज्ञों ने विश्वविद्यालय के लिए “ऐतिहासिक”, “दूरदर्शी” और “आवश्यक” सुधार बताया है। उनका मानना है कि यह कदम न केवल शासन व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बनाएगा, बल्कि विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप भी स्थापित करेगा। वहीं राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। कांग्रेस विधायक कुलजीत नागरा ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया। आरएसएस और भाजपा पीयू को छोटा नागपुर बनाना चाहते हैं। पंजाब और पंजाबियों को यह मंजूर नहीं। केंद्र सरकार इसे तुरंत वापस ले। सीनेट की नई अधिसूचना को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद मलविंदर कंग, चंडीगढ़ यूटी के सांसद मनीष तिवारी और चंडीगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष एचएस लक्की भी कैंपस औये और उन्होंने इस फैसले का कड़ा विरोध किया। उनके साथ कुछ पूर्व सीनेटर भी थे जिन्होंने सीनेट के पुनर्गठन का विरोध किया और सीनेट को पुराने स्वरूप में बहाल करने की मांग की। इसी बीच पता चला है कि आप के छात्र विंग एएसएपी ने कल बंद की कॉल दी है। पंजाब यूनिवर्सिटी के एल्यूमनाई और पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता जगमोहन कंग ने इसे पंजाब पर हमला बताया और कहा कि सरकार संघ के लोगों को पीयू में भरने जा रही है। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला बताया। अकाली दल और आप पार्टी ने भी इसका कड़ा विरोध किया है। पीयू के पूर्व कुलपति प्रो. के. एन. पाठक ने कहा कि यह कदम लंबे समय से लंबित था और समय के साथ इसके लाभ स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे। वहीं, पूर्व कुलपति प्रो. अरुण ग्रोवर ने कहा कि पिछली सीनेटों ने शासन सुधारों की अनदेखी की, जबकि 2018 से समिति की रिपोर्ट लंबित थी। केंद्र सरकार की नई अधिसूचना से अब कुलपति को ‘बॉडी कॉरपोरेट’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने में राहत मिलेगी हालांकि उन्होंने ग्रेजुएट कांस्टीचुएंसी को समाप्त किये जाने पर आपत्ति भी जतायी। गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय कौशिक ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय सदैव सुधारों की परंपरा वाला संस्थान रहा है। हालिया पुनर्गठन दक्षता बढ़ाने और शासन को समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप लाने का प्रयास है, जो स्वायत्तता और उत्कृष्टता दोनों को सुदृढ़ करेगा। पूर्व पूटा अध्यक्ष प्रो. प्रोमिला पाठक ने कहा कि अधिसूचना से शासन में लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित हुआ है। अब विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों, प्राचार्यों व पूर्व छात्रों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है। पहले 91 सदस्यीय सीनेट की जगह अब चुनी हुई संरचना अधिक प्रभावी और शिक्षण-केंद्रित होगी। प्रो. प्रशांत गौतम ने कहा कि यह सुधार ‘पारदर्शिता, योग्यता और जवाबदेही’ को बढ़ावा देगा। केवल स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को समाप्त किया गया है, बाकी सभी श्रेणियों में चुनाव जारी रहेंगे। यह शिक्षक-नेतृत्व आधारित शासन को मजबूत करेगा और विश्वविद्यालय को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगा। यूआईएलएस के प्रो. भारत ने कहा कि यह सुधार विश्वविद्यालय को “विशेषज्ञता-आधारित शासन मॉडल” की ओर ले जाएगा और इसे 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाएगा। उन्होंने इसे “परंपरा से भविष्य की ओर कदम” बताया। डॉ. अनुज कुमार गुप्ता (कंप्यूटर साइंस विभाग) ने कहा कि अब ध्यान संख्या पर नहीं, बल्कि योग्यता और गुणवत्ता पर रहेगा। इससे अनुसंधान और शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्राथमिकता मिलेगी। सर्वसम्मति से शिक्षाविदों का मानना है कि यह अधिसूचना पंजाब विश्वविद्यालय के लिए नई दिशा तय करेगी-जहाँ शासन में पारदर्शिता, शिक्षक नेतृत्व और शैक्षणिक उत्कृष्टता साथ-साथ आगे बढ़ेंगे।
Advertisement

जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू

पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट और सिंडिकेट के पुनर्गठन संबंधी केंद्र सरकार की हालिया अधिसूचना को शिक्षाविदों, पूर्व कुलपतियों और विशेषज्ञों ने विश्वविद्यालय के लिए “ऐतिहासिक”, “दूरदर्शी” और “आवश्यक” सुधार बताया है।

Advertisement

उनका मानना है कि यह कदम न केवल शासन व्यवस्था को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और प्रभावी बनाएगा, बल्कि विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप भी स्थापित करेगा। वहीं राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे तुरंत वापस लेने की मांग की। कांग्रेस विधायक कुलजीत नागरा ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया। आरएसएस और भाजपा पीयू को छोटा नागपुर बनाना चाहते हैं। पंजाब और पंजाबियों को यह मंजूर नहीं। केंद्र सरकार इसे तुरंत वापस ले। सीनेट की नई अधिसूचना को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद मलविंदर कंग, चंडीगढ़ यूटी के सांसद मनीष तिवारी और चंडीगढ़ कांग्रेस अध्यक्ष एचएस लक्की भी कैंपस औये और उन्होंने इस फैसले का कड़ा विरोध किया। उनके साथ कुछ पूर्व सीनेटर भी थे जिन्होंने सीनेट के पुनर्गठन का विरोध किया और सीनेट को पुराने स्वरूप में बहाल करने की मांग की। इसी बीच पता चला है कि आप के छात्र विंग एएसएपी ने कल बंद की कॉल दी है। पंजाब यूनिवर्सिटी के एल्यूमनाई और पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता जगमोहन कंग ने इसे पंजाब पर हमला बताया और कहा कि सरकार संघ के लोगों को पीयू में भरने जा रही है। उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण फैसला बताया। अकाली दल और आप पार्टी ने भी इसका कड़ा विरोध किया है। पीयू के पूर्व कुलपति प्रो. के. एन. पाठक ने कहा कि यह कदम लंबे समय से लंबित था और समय के साथ इसके लाभ स्पष्ट रूप से दिखाई देंगे। वहीं, पूर्व कुलपति प्रो. अरुण ग्रोवर ने कहा कि पिछली सीनेटों ने शासन सुधारों की अनदेखी की, जबकि 2018 से समिति की रिपोर्ट लंबित थी। केंद्र सरकार की नई अधिसूचना से अब कुलपति को ‘बॉडी कॉरपोरेट’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करने में राहत मिलेगी हालांकि उन्होंने ग्रेजुएट कांस्टीचुएंसी को समाप्त किये जाने पर आपत्ति भी जतायी। गुरुग्राम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. संजय कौशिक ने कहा कि पंजाब विश्वविद्यालय सदैव सुधारों की परंपरा वाला संस्थान रहा है। हालिया पुनर्गठन दक्षता बढ़ाने और शासन को समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप लाने का प्रयास है, जो स्वायत्तता और उत्कृष्टता दोनों को सुदृढ़ करेगा। पूर्व पूटा अध्यक्ष प्रो. प्रोमिला पाठक ने कहा कि अधिसूचना से शासन में लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित हुआ है। अब विश्वविद्यालय और संबद्ध कॉलेजों के शिक्षकों, प्राचार्यों व पूर्व छात्रों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिला है। पहले 91 सदस्यीय सीनेट की जगह अब चुनी हुई संरचना अधिक प्रभावी और शिक्षण-केंद्रित होगी। प्रो. प्रशांत गौतम ने कहा कि यह सुधार ‘पारदर्शिता, योग्यता और जवाबदेही’ को बढ़ावा देगा। केवल स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को समाप्त किया

गया है, बाकी सभी श्रेणियों में चुनाव जारी रहेंगे। यह शिक्षक-नेतृत्व आधारित शासन को मजबूत करेगा और विश्वविद्यालय को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगा। यूआईएलएस के प्रो. भारत ने कहा कि यह सुधार विश्वविद्यालय को “विशेषज्ञता-आधारित शासन मॉडल” की ओर ले जाएगा और इसे 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाएगा। उन्होंने इसे “परंपरा से भविष्य की ओर कदम” बताया। डॉ. अनुज कुमार गुप्ता (कंप्यूटर साइंस विभाग) ने कहा कि अब ध्यान संख्या पर नहीं, बल्कि योग्यता और गुणवत्ता पर रहेगा।

इससे अनुसंधान और शैक्षणिक उत्कृष्टता को प्राथमिकता मिलेगी। सर्वसम्मति से शिक्षाविदों का मानना है कि यह अधिसूचना पंजाब विश्वविद्यालय के लिए नई दिशा तय करेगी-जहाँ शासन में पारदर्शिता, शिक्षक नेतृत्व और शैक्षणिक उत्कृष्टता साथ-साथ आगे बढ़ेंगे।

Advertisement
Show comments