पूर्व एसएसपी सहित पांच पुलिस अधिकारी दोषी करार
तरनतारन में वर्ष 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में पूर्व एसएसपी और पूर्व डीएसपी सहित पंजाब पुलिस के पांच अधिकारियों को दोषी ठहराया गया है। मोहाली की सीबीआई की विशेष अदालत के जज जस्टिस बलजिंदर सिंह सरा ने पूर्व एसएसपी भूपिंदरजीत सिंह, पूर्व इंस्पेक्टर सूबा सिंह, पूर्व डीएसपी दविंदर सिंह, पूर्व एएसआई गुलबर्ग सिंह और पूर्व एएसआई रघबीर सिंह को आपराधिक साजिश, हत्या, रिकॉर्ड नष्ट करने और फर्जीवाड़ा करने के आरोप में दोषी करार दिया। दोषियों को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया। उन्हें 4 अगस्त यानी सोमवार को सजा सुनाई जाएगी। अदालत में उपस्थित पीड़ित परिवारों के सदस्यों ने कहा कि 32 साल बाद उन्हें न्याय मिला है। गौरतलब है कि रानी विल्लाह गांव के तीन एसपीओ सहित सात युवकों को तरनतारन पुलिस ने दो मुठभेड़ों के बाद उठा लिया था और फिर उन्हें मुठभेड़ में मरा दिखाया गया था। पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने 2002 में भूपिंदरजीत सिंह आरोप पत्र पेश किया था। इसमें पुलिसकर्मी गुरदेव सिंह, ज्ञान चंद, देविंदर सिंह, गुलबर्ग सिंह, सूबा सिंह, जगीर सिंह, रघुबीर सिंह, मोहिंदर सिंह, अरूर सिंह को नामजद किया गया। लेकिन 2010-21 के दौरान इस मामले के पांच आरोपियों की मृत्यु हो गई। सीबीआई ने 67 गवाहों का हवाला दिया था, लेकिन सुनवाई के दौरान 36 गवाहों की मृत्यु हो गई और इस मामले में केवल 28 ने गवाही दी।
अवैध हिरासत में रखा, प्रताड़ित किया और फिर मुठभेड़ में मरा दिखाया
32 साल पुराने इस मामले की जांच सीबीआई ने पंजाब पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर लावारिस शवों के अंतिम संस्कार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 12 दिसंबर 1996 को पारित आदेशों पर की थी। 1997 में सीबीआई ने प्रारंभिक जांच की और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1999 में एसपीओ शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर के बयान पर नियमित मामला दर्ज किया गया, जिसे मुठभेड़ में मरा दिखाया गया था। उसके शव को अज्ञात और लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार कर दिया गया था। सीबीआई जांच में यह साबित हुआ कि 27 जून 1993 की सुबह, इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह एसएचओ थाना सरहाली के नेतृत्व में एक पुलिस दल ने एसपीओ शिंदर सिंह, देसा सिंह, सुखदेव सिंह, बलकार सिंह उर्फ बॉबी और दलजीत सिंह को सरकारी ठेकेदार जोगिंदर सिंह के निवास से उनके परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में जबरन उठाया, जहां वे गनमैन के रूप में ड्यूटी कर रहे थे। उन्हें थाना सरहाली ले जाया गया, जहां उन्हें अवैध रूप से रखा गया और गांव संगतपुरा के एक डकैती मामले में उनकी संलिप्तता स्वीकार करने के लिए बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया। फिर उनके घरों की तलाशी लेने के लिए उन्हें गांव रानी वल्लाह ले जाया गया। दूसरी ओर 2 जुलाई 1993 को सरहाली पुलिस ने एक झूठी एफआईआर दर्ज की, जिसमें कहानी गढ़ी गई थी कि शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह उनको जारी किए गए हथियार व गोला-बारूद के साथ ड्यूटी से फरार हो गए हैं। जांच से यह भी पता चला कि उपरोक्त एसपीओ के अपहरण के 6-7 दिनों के बाद बलकार सिंह उर्फ काला को भी गांव रानी वल्लाह में उसके घर से उठाया गया था। सीबीआई जांच में आगे खुलासा कि 12 जुलाई 1993 को भूपिंदरजीत सिंह, तत्कालीन डीएसपी गोइंदवाल साहिब और इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह एसएचओ थाना सरहाली के नेतृत्व में पुलिस पार्टी ने दिखाया था कि गांव करमूवाला के मंगल सिंह को डकैती के एक मामले में वसूली के लिए गांव घरका ले जाते समय पुलिस पार्टी पर आतंकवादियों ने हमला किया और क्रॉस फायरिंग के दौरान मंगल सिंह और तीन हमलावर मारे गए। मुठभेड़ को वास्तविक दिखाने के लिए रिकॉर्ड में हेराफेरी की गई थी। हालांकि पुलिस फ़ाइल के अनुसार हमलावरों के शवों को एएसआई गुलबर्ग सिंह और एएसआई देविंदर सिंह द्वारा पहचाना गया था, लेकिन इनका अंतिम संस्कार अज्ञात और लावारिस के रूप में कर दिया गया।
सीबीआई जांच में यह भी खुलासा हुआ कि सुखदेव सिंह को बाद में वेरोवाल पुलिस को सौंप दिया गया था। वेरोवाल पुलिस ने जून 1993 के दौरान सरबजीत सिंह को उसके गांव हंसावाला अमृतसर से और हरविंदर सिंह निवासी जलाबाद को कैथल, हरियाणा से अगवा किया था।