जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 7 फरवरी
पंजाब विश्वविद्यालय ने 13 फरवरी को सीनेट की आनलाइन मॉड से एक आपात बैठक बुलायी है जिसमें नैक एक्रीडीटेशन से जुड़े मसलों पर चर्चा होगी। डीन रिसर्च की ओर से 31 दिसंबर को एक नोट भेजा गया जिसमें इंटरनल क्वालिटी एश्योरेंस कमेटी (आईक्यूएसी) की ओर से मिले इनपुट के आधार पर कुछ पॉलिसी दस्तावेजों को सक्षम अथॉरिटी द्वारा अप्रूव कराने की बात कही गयी। इन दस्तावेजों में रिसर्च, इनक्यूबेशन एंड स्टार्टअप्स पॉलिसी, आईटी पॉलिसी, पॉलिसी फार मैनेजमेंट एंड यूटीलाइजेशन, फिजिकल एंड एकेडमिक स्पोर्ट्स फेसीलिटिज, पॉलिसी फार रिसोर्स मोबलाइजेशन, जेंडर इक्विटी, कोड आफ कंडक्ट, वेस्ट मैनेजमेंट और ग्रीन कैंपस एंड एनवायरनमेंट ऑडिट पॉलिसी शामिल हैं।
डीन रिसर्च का कहना है कि इन पॉलिसी के बिना पीयू का ओवरआल नैक ग्रेड प्रभावित हो सकता है। इसी के आधार पर कुलपति प्रो. राजकुमार ने डीयूआई एसके तोमर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी जिसमें प्रो. देविंदर सिंह, सुखबीर कौर, सविता गुप्ता, योजना रावत, के. गाबा, सोनल चावला, लतिका शर्मा, जगत भूषण, हेमंत बतरा, सुशील कांसल, प्रशांत गौतम, अशोक कुमार, जयंती दत्ता, निधि गौतम, गुरमीत सिंह, गौरव गौड़, प्रियतोष शर्मा, रवि इंदर सिंह को शामिल किया था। कमेटी की बैठक में कहा गया कि नैक का दौरा ड्यू है और पीयू को दौरे से पहले सेल्फ स्टडी रिपोर्ट (एसएसआर) जमा करानी होगी जो नैक के पैरामीटर्स के लिये आवश्यक है। नैक के 70 फीसदी अंक तो पीयू द्वारा फाइल की जाने वाली एसएसआर रिपोर्ट पर ही आधारित हैं। इन पैरामीटर्स में अगर कोई कंपलायेंस है तो एसएसआर रिपोर्ट जाने से पहले ही पूरी करनी होगी, नैक टीम के दौरे के बाद उसका कोई मतलब नहीं होगा और पीयू अंक गंवा सकती है। डीन रिसर्च के मुताबिक अभी कई पॉलिसी तैयार अथवा सीनेट/सिंडिकेट से अप्रूव होनी हैं ताकि इन्हें एसएसआर का हिस्सा बनाया जा सके। ऐसा नहीं होने पर अंकों पर असर पड़ सकता है। बैठक में सदस्यों का मत था कि सभी आवश्यक पॉलिसी डाक्यूमेंट अप्रूव कराने के बाद ही एसएसआर रिपोर्ट नैक को भेजी जाये। समस्या ये है कि सिंडिकेट अभी वजूद में नहीं है और सीनेट में कोई आइटम सीधे नहीं लायी जा सकती। लेकिन हाईकोर्ट ने 28 फरवरी तक सिंडिकेट गठन पर रोक लगा रखी है। इसीलिये कुछ संवैधानिक प्रावधानों का हवाले से अति असाधारण हालात की दुहाई देकर एक बार फिर सीनेट की मीटिंग बुला ली गयी है।
आप ही प्रस्ताव भेजा, खुद ही पास कर दिया
मजे की बात ये है कि डीन रिसर्च ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिन 31 जनवरी को यह डीयूआई को प्रस्ताव भेजा। जो व्यक्ति 31 जनवरी को डीन रिसर्च प्रो. एसके तोमर थे वो ही पहली फरवरी को डीयूआई भी बन गये। सोची-समझी रणनीति के तहत प्रो. एसके तोमर ने यह फाइल डीन रिसर्च की हैसियत से अपने आखिरी कार्यदिवस पर निकाली और अगले दिन बतौर डीयूआई उस पर कमेंट्स चढ़ाये और कमेटी की अनुशंसा कर दी। कितनी तेजी से पहले ही दिन में 20 सदस्यी कमेटी बन गयी और अगले ही दिन उसकी बैठक भी बुला ली गयी जिसकी मिनट्स तीन फरवरी को जारी कर दी गयी। पूर्व कुलपति और सीनेटर प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने इस पर कहा कि कमेटी में कम से कम पूटा प्रधान या कोई प्रतिनिधि तो अवश्य रखा जाना चाहिए था। कालेजों से टीचर्स के प्रतिनिधि को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए था। प्रो. ग्रोवर ने कहा कि डीयूआई को सीनेट की मीटिंग बुलाने का कोई अधिकार नहीं है, यह काम तो केवल रजिस्ट्रार का ही है।