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टखने की गलत जुड़ी हड्डियों के इलाज का नया तरीका, PGIMER के डॉ. संदीप ने बनाई ‘पटेल–ढिल्लों क्लासिफिकेशन’

नई सर्जरी तकनीकों में हड्डी को काटकर सही कोण और स्थिति में जोड़ा जा सकता है दोबारा
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PGIMER चंडीगढ़ के आर्थोपेडिक्स विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. संदीप पटेल ने टखने की गलत तरीके से जुड़ी हड्डियों (Ankle Malunion) को पहचानने व उपचार तय करने के लिए एक नई और व्यवस्थित क्लासिफिकेशन प्रणाली विकसित की है।

इसका नाम ‘पटेल-ढिल्लों क्लासिफिकेशन’ रखा गया है। यह शोध इंडियन जर्नल ऑफ ऑर्थोपेडिक्स में प्रकाशित हुआ है। इसे टखने की विकृति को समझने में देश-विदेश के सर्जनों के लिए महत्वपूर्ण योगदान माना जा रहा है।

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टखना गलत जुड़ने की समस्या क्या होती है?

जब टखने में फ्रैक्चर होता है और इलाज समय पर या सही तरीके से नहीं हो पाता, तो हड्डी टेढ़ी या गलत स्थिति में जुड़ जाती है। यह समस्या ग्रामीण इलाकों या दुर्घटना के बाद देर से इलाज होने वाले मामलों में ज्यादा देखी जाती है। इसके कारण:

लगातार चलते समय दर्द होता है।

टखना कमजोर या अस्थिर महसूस होता है।

पैर का आकार बदल सकता है।

आगे चलकर गठिया होने की संभावना बढ़ जाती है।

पहले इलाज क्यों कठिन था?

लंबे समय तक ऐसे मामलों में एंकल फ्यूजन का ही सहारा लिया जाता था।

इसमें जोड़ को हिलने-डुलने से रोक दिया जाता है।

इससे दर्द तो कम होता है, पर मरीज की टखने की हरकत हमेशा के लिए खत्म हो जाती है।

नई क्लासिफिकेशन का फायदा क्या है?

अब नई सर्जरी तकनीकों में हड्डी को काटकर सही कोण और स्थिति में दोबारा जोड़ा जा सकता है, जिससे जोड़ सुरक्षित रहता है और टखना अपनी प्राकृतिक हरकत वापस पा सकता है। पटेल–ढिल्लों क्लासिफिकेशन डॉक्टरों को यह समझने में मदद करती है कि विकृति किस हिस्से में है, कितनी गहरी है और उसे ठीक करने के लिए किस प्रकार की सर्जरी की जानी चाहिए। इसे एक साफ और चरणबद्ध मार्गदर्शिका माना जा रहा है। डॉ. संदीप पटेल का कहना है कि हम चाहते हैं कि मरीज इलाज के बाद फिर से सामान्य रूप से चल-फिर सके। यह क्लासिफिकेशन डॉक्टरों को फैसले लेने में मदद करेगी कि कब जोड़ को बचाया जा सकता है। कब सुधार सर्जरी करना बेहतर है।

निरंतर शोध और उपलब्धियां

यह पिछले दो साल में डॉ. पटेल द्वारा विकसित तीसरी क्लासिफिकेशन है।

वे पिछले वर्ष टखने के एक नए फ्रैक्चर पैटर्न के नामकरण वाले देश के एकमात्र भारतीय सर्जन भी हैं।

इससे PGIMER का नाम आर्थोपेडिक शोध और शिक्षा के क्षेत्र में और मजबूत हुआ है।

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