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डाॅ. राजेंद्र कनौजिया की पुस्तक ‘मेरी प्रिय कहानियां’ का विमोचन

चंडीगढ़ की साहित्य-संस्था अभिव्यक्ति, सृष्टि प्रकाशन और सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के संयुक्त तत्वावधान में सेक्टर-17 की लाइब्रेरी में डाॅ. राजेंद्र कुमार कनौजिया की नवीनतम पुस्तक ‘मेरी प्रिय कहानियां’ का विमोचन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रतन चंद ‘रत्नेश’ ने...

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चंडीगढ़ के सेक्टर-17 लाइब्रेरी में डाॅ. राजेंद्र कुमार कनौजिया की पुस्तक का विमोचन करते साहित्यकार। -हप्र
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चंडीगढ़ की साहित्य-संस्था अभिव्यक्ति, सृष्टि प्रकाशन और सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के संयुक्त तत्वावधान में सेक्टर-17 की लाइब्रेरी में डाॅ. राजेंद्र कुमार कनौजिया की नवीनतम पुस्तक ‘मेरी प्रिय कहानियां’ का विमोचन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रतन चंद ‘रत्नेश’ ने की।

संग्रह में प्रकाशित कहानियों पर विजय कपूर, डॉ. दलजीत कौर और डॉ. अश्वनी शांडिल्य ने अपने विचार रखे। डाॅ. दलजीत कौर ने संग्रह की सभी कहानियों पर संक्षिप्त टिप्पणी की, जबकि विजय कपूर और डॉ. शांडिल्य ने इन कहानियों के सकारात्मक पक्ष, कथ्य और भाषा-शैली पर प्रकाश डाला।

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उनका कहना था कि कहानियां सामाजिक चेतना से जुड़ी हुई हैं और साथ ही मानव मूल्यों में होते ह्रास को रेखांकित करती हैं। ‘बरगद के फूल’ संग्रह की बेहतर कहानियों में से एक है जिसमें घर के बुजुर्ग के अपने जैसे एक बुजुर्ग पेड़ को कटने से बचाने की कश्मकश परिलक्षित होती है।

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अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में रतन चंद ‘रत्नेश’ ने कहानियों, लघुकथाओं और पत्रिकाओं में प्रकाशित पेंटिग्स के माध्यम से डॉ. कनौजिया का परिचय कराते उनकी बीस वर्ष पूर्व लिखी रचनाओं का जिक्र किया और उनकी एक लघुकथा ‘घरौंदा’ सुनाते हुए संग्रह की विशेषकर चार कहानियों शिनाख्त, खानाबदोश, टूटते पुल दरकती दीवारें और दीमक की ओर ध्यान खींचा।

इनका संबंध शहरयार के एक गज़़ल ‘ये क्या जगह है दोस्तों, यह कौन सा दयार है’ से जोड़कर सुनाते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में आगे बढ़ने की चाहत में पीछे क्या कुछ छूट जाता है, यह इन कहानियों में बखूबी झलकता है। इन कहानियों की भावभूमि एक होने के बावजूद इनके ट्रीटमेंट में विविधता को उन्होंने रेखांकित किया।

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