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लैंगिक भेदभाव, यौन शोषण से निपटने को सामूहिक प्रयास जरूरी : डॉ. सुमिता

भारत भूषण/ट्रिन्यू चंडीगढ़, 20 नवंबर समाज और कार्यस्थल पर महिलाओं से होने वाले लैंगिक भेदभाव और यौन शोषण के बाद जो चुप्पी हर तरफ से साध ली जाती है, उसी के खिलाफ मैंने सवाल उठाए हैं। यह सोचना एक मिथक...

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चंडीगढ़ में बुधवार को वरिष्ठ आईएएस डॉ. सुमिता मिश्रा एवं पूर्व एडीजीपी राजबीर देसवाल डॉ. चेतना वैष्णवी की पुस्तक का विमोचन करते हुए।
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भारत भूषण/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 20 नवंबर

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समाज और कार्यस्थल पर महिलाओं से होने वाले लैंगिक भेदभाव और यौन शोषण के बाद जो चुप्पी हर तरफ से साध ली जाती है, उसी के खिलाफ मैंने सवाल उठाए हैं। यह सोचना एक मिथक है कि अगर महिलाएं उच्च शिक्षित हैं और उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है तो उनके खिलाफ यौन शोषण या यौन हिंसा का जोखिम कम होगा। मेडिकल साइंस में पोस्ट डॉक्टरल एवं बीते 40 वर्षों से चिकित्सा जगत से जुड़ीं डॉ. चेतना वैष्णवी ने अपने नॉवेल ‘साइलेंस जोन’ और ‘शाम ढल गई’ के विमोचन अवसर पर यह बात कही। बुधवार को चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम में वरिष्ठ आईएएस एवं हरियाणा सरकार में अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा एवं हरियाणा के पूर्व एडीजीपी राजबीर देसवाल ने संयुक्त रूप से इन पुस्तकों का विमोचन किया। इस अवसर पर डॉ. सुमिता मिश्रा ने कहा कि ‘साइलेंस जोन’ एक काल्पनिक कहानी है, लेकिन वास्तविकता के बहुत करीब है और हमारे आसपास मौजूद कार्यस्थलों पर यौन शोषण और लैंगिक भेदभाव के बेहद अहम मुद्दे को मार्मिक ढंग से सामने लाती है। उन्होंने कहा कि कार्य स्थल पर अगर किसी महिला के साथ ऐसी घटना घट जाए तो सहयोगी कर्मियों के द्वारा यही कहा जाता है कि उन्होंने कुछ नहीं देखा, हालांकि यह संभव है कि सब कुछ उनकी आंखों के समक्ष ही घटा हो। लैंगिक भेदभाव और यौन शोषण ऐसा मुद्दा है, जोकि हम सभी को चिंतित करता है और इसकी जरूरत पर बल देता है कि हमें इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिएं।

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लेखिका डॉ. चेतना वैष्णवी ने कहा कि अन्य कार्य क्षेत्रों के अलावा अस्पतालों में भी यौन शोषण आम बात है, हालांकि इस बारे में सबसे कम रिपोर्ट किया जाता है। चुपचाप घट जाने वाली ऐसी ही सच्ची घटनाओं से स्तब्ध होकर एक मेडिकल फिक्शन के रूप में उन्होंने ‘साइलेंस जोन’ को लिखा है।

डॉ. वैष्णवी ने कहा कि यौन शोषण एक काली सच्चाई है जो नियमित रूप से दैनिक जीवन को प्रभावित करती है। वहीं डॉ. चेतना वैष्णवी की दूसरी पुस्तक ‘ढल गई शाम’ के संबंध में पूर्व एडीजीपी हरियाणा राजबीर देसवाल ने कहा कि इन कहानियों और कविताओं में लयबद्धता है और उनमें जीवन के सभी भाव निखर कर सामने आते हैं। उन्होंने इन रचनाओं को जीवन अनुभूत बताया। कहानियों का सबसे खूबसूरत पहलू यह है कि इनका समापन पंच लाइन से होता है जोकि पाठक को सोचने पर विवश कर देता है।

गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल इंफेक्शन सोसायटी आफ इंडिया की संस्थापक एवं चेयरपर्सन डॉ. चेतना वैष्णवी ने कहा कि साल 1997 में सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में दर्ज किए जाने के बावजूद आज भी बड़े पैमाने पर कार्यस्थलों पर ऐसी घटनाओं की अनदेखी हो रही है। सच्चाई यह है कि यौन शोषण हर क्षेत्र में होता है, चाहे वह सेक्टर कितना भी हाईफाई न क्यों न हो।

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