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CML Survivor Day जानलेवा बीमारी से जंग जीतकर मरीजों ने लिखी नई जिंदगी की

बीमारी से उम्मीद तक का सफर

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क्रॉनिक मायलॉइड ल्यूकेमिया (सीएमएल) कभी ऐसी बीमारी थी, जिसका नाम सुनते ही जीवन की उम्मीदें टूट जाती थीं। लेकिन विज्ञान की प्रगति और मरीजों के अटूट हौसले ने इसे एक ऐसी स्थिति में बदल दिया है, जहां लोग अब वर्षों तक सामान्य जीवन जी पा रहे हैं। इस बदलाव का उत्सव रविवार को पीजीआईएमईआर में मनाया गया, जब 600 से अधिक मरीज और उनके परिजन ‘सीएमएल सर्वाइवर डे’ के मौके पर एकजुट हुए।

पीजीआई का क्लिनिकल हेमेटोलॉजी और मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग हर महीने 500 से अधिक सीएमएल मरीजों का इलाज करता है, जबकि करीब 5,000 मरीज नियमित निगरानी में हैं। एक समय, जब इस बीमारी से औसतन केवल 2 से 3 साल तक ही जीवन संभव था, वर्ष 2001 में इमैटिनिब (मैजिक बुलेट) दवा ने इलाज का पूरा परिदृश्य बदल दिया। आज अधिकांश मरीज डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी स्थितियों की तरह दवा और देखभाल के सहारे लंबे और उत्पादक जीवन जी रहे हैं।

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प्रेरणादायक कहानियां

कार्यक्रम की सबसे भावुक झलक वह थी, जब 1989 से सीएमएल से लड़ रहे एक वरिष्ठ मरीज ने अपने अनुभव साझा किए। उनकी यात्रा ने साबित किया कि सही इलाज, नियमित फॉलो-अप और हौसले से जिंदगी को नए सिरे से जिया जा सकता है।

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इस मौके पर केयरगिवर्स की भूमिका को भी विशेष महत्व दिया गया। प्रियांका कुबल ने कहा कि मरीजों के साथ-साथ खुद का ख्याल रखना भी देखभाल करने वालों के लिए उतना ही जरूरी है। द मैक्स फाउंडेशन की इंडिया हेड बीना नारायणन, उर्वशी, सहायता संस्था की रेनू सैगल और दमन ने भी भाग लिया और निरंतर सहयोग का भरोसा दिलाया।

विशेषज्ञों से संवाद और नयी उम्मीदें

कार्यक्रम में डॉ. सुभाष वर्मा, डॉ. नीला वर्मा, डॉ. अल्का खदवाल, डॉ. गौरव प्रकाश, डॉ. अरिहंत जैन, डॉ. शानो नसीम, डॉ. आदित्य जांडियाल और डॉ. चरणप्रीत सिंह ने मरीजों की शंकाओं का समाधान किया। यह संवाद मरीजों और परिजनों के लिए आश्वस्ति और नई दिशा लेकर आया।

अधिकांश मरीजों को मिल रही निशुल्क दवा : डा. विवेक लाल

पीजीआईएमईआर के निदेशक डॉ. विवेक लाल ने कहा कि आयुष्मान भारत योजना और जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता ने मरीजों के लिए उपचार को और सुलभ बना दिया है। अब अधिकांश मरीज निःशुल्क और कारगर दवाओं तक पहुंच पा रहे हैं।

उम्मीद का प्रतीक

‘सीएमएल सर्वाइवर डे’ केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह इस बात का प्रतीक है कि मरीजों की जिजीविषा, वैज्ञानिक खोजों और सामूहिक सहयोग ने असंभव को संभव कर दिखाया है। कभी मौत का दूसरा नाम मानी जाने वाली बीमारी आज एक नियंत्रित स्थिति में है, जो मरीजों को लंबी और सार्थक जिंदगी जीने का अवसर देती है।

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