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Child Trafficking Prevention मासूमों के सौदागरों पर शिकंजा कसने की तैयारी, चंडीगढ़ में बाल तस्करी के खिलाफ साझा मोर्चा

जिस उम्र में बच्चे स्कूल की घंटियों, खिलौनों और सपनों के बीच होने चाहिए, उसी उम्र में कुछ मासूम रेलगाड़ियों और सीमाओं के रास्ते 'सौदे' बनकर कहीं और भेज दिए जाते हैं। इस खौफनाक हकीकत से लड़ने के लिए चंडीगढ़...
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जिस उम्र में बच्चे स्कूल की घंटियों, खिलौनों और सपनों के बीच होने चाहिए, उसी उम्र में कुछ मासूम रेलगाड़ियों और सीमाओं के रास्ते 'सौदे' बनकर कहीं और भेज दिए जाते हैं। इस खौफनाक हकीकत से लड़ने के लिए चंडीगढ़ में बुधवार को एक नयी पहल की गई—जहां पुलिस, समाजसेवी संगठन और सरकारी एजेंसियां एकजुट होकर बाल तस्करी को जड़ से खत्म करने की रणनीति पर जुटीं।

वीमेन सेल, सेक्टर-17 में हुई इस अहम स्टेकहोल्डर मीटिंग में ज़िला युवा विकास संगठन चंडीगढ़ की अगुवाई में कई विभागों ने हिस्सा लिया। बाल तस्करी के खिलाफ यह बैठक केवल चर्चा भर नहीं थी, बल्कि एक स्पष्ट संदेश था—अब खामोशी नहीं, कार्रवाई होगी।

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हर घंटे 10 बच्चे बन रहे तस्करी का शिकार : बड़ौला

बैठक में डीएसपी जसविंदर कौर, एएचटीयू प्रभारी आशा शर्मा, पुलिस व महिला सेल अधिकारी और सामाजिक संगठन ‘जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन’ के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। ज़िला युवा विकास संगठन के अध्यक्ष परमजीत सिंह बड़ौला ने बताया कि जुलाई के पूरे महीने रेलवे स्टेशनों पर विशेष अभियान चलाकर बच्चों को तस्करी से बचाने का प्रयास किया गया।

बड़ौला ने बताया कि भारत में हर घंटे लगभग 10 बच्चे तस्करी का शिकार बनते हैं, और हर दिन करीब तीन बच्चे जबरन मजदूरी के अंधे कुएं में धकेल दिए जाते हैं। ये आंकड़े केवल चेतावनी नहीं, एक सामाजिक आपातकाल हैं।

तस्करी के तौर-तरीकों पर हुई चर्चा

इस मौके पर शीतल और नग़मा ने बच्चों की तस्करी के तौर-तरीकों, इसके कारणों और इसके खिलाफ कानूनों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केवल बचाव ही नहीं, अब समय है—सुनियोजित और संयुक्त प्रतिकार का।

बैठक में सभी विभागों ने यह संकल्प लिया कि वह आने वाले दिनों में जागरूकता अभियानों, त्वरित कार्रवाई और बच्चों की पुनर्वास व्यवस्था को और मजबूत करेंगे। बाल तस्करी अब केवल एनजीओ या पुलिस की चिंता नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है—यही इस मीटिंग की सबसे बड़ी उपलब्धि रही।

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