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सीलिएक सिर्फ बीमारी नहीं, जीवनशैली में बदलाव है: प्रो. साधना लाल

विवेक शर्मा/ट्रिन्यू चंडीगढ़, 16 मई आठ साल पहले पीजीआई में सीलिएक रोग की पहचान हुई एक बच्ची आज लिवर ट्रांसप्लांट की कगार पर खड़ी है। बीमारी की पहचान समय पर हो गई थी, लेकिन घर में डाइट को लेकर लापरवाही...
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विवेक शर्मा/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 16 मई

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आठ साल पहले पीजीआई में सीलिएक रोग की पहचान हुई एक बच्ची आज लिवर ट्रांसप्लांट की कगार पर खड़ी है। बीमारी की पहचान समय पर हो गई थी, लेकिन घर में डाइट को लेकर लापरवाही हुई। बच्ची ने ग्लूटेन फ्री डाइट नहीं अपनाई और अब उसके लीवर को भारी नुकसान पहुंच चुका है। फिलहाल दवाओं से सुधार हो रहा है, लेकिन यह मामला इस बात की चेतावनी है कि सीलिएक रोग को हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है।

इसी मार्मिक उदाहरण के साथ पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी और हेपेटोलॉजी विभाग ने शुक्रवार को सीलिएक रोग दिवस मनाया। इस मौके पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने बताया कि यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि पूरी जीवनशैली में बदलाव की मांग करता है।

उत्तर भारत में अधिक मामले, पहचान में होती है देरी

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. साधना लाल ने कहा, “सीलिएक रोग उत्तर भारत के राज्यों—पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड और राजस्थान—में अधिक देखा जाता है। इसका कारण गेहूं आधारित भोजन और आनुवांशिक प्रवृत्तियां हैं।”

उन्होंने कहा कि यह रोग अक्सर बिना खास लक्षणों के आता है या सामान्य सी परेशानियों में छिपा रहता है, जिससे समय पर पहचान नहीं हो पाती। “यह एक हिमखंड की तरह है—जो सतह पर दिखता है वह केवल छोटा हिस्सा है, जबकि असली नुकसान भीतर चलता रहता है,” उन्होंने कहा।

बच्चों में बदल रहा है लक्षणों का स्वरूप

प्रो. लाल ने बताया कि पहले इस रोग के कारण बच्चों में वृद्धि रुक जाती थी, लेकिन अब करीब 50 प्रतिशत बच्चे सामान्य वृद्धि के साथ सामने आ रहे हैं, जिससे डॉक्टरों को भी गहराई से जांच करनी पड़ती है। हालांकि, आयरन की कमी और एनीमिया आज भी सबसे आम लक्षण हैं।

ग्लूटेन है धीमा ज़हर

“सीलिएक रोग में ग्लूटेन का सेवन धीमे ज़हर की तरह काम करता है। यह धीरे-धीरे आंतों और अन्य आंतरिक अंगों को नुकसान पहुंचाता है। इसका एकमात्र इलाज है—जीवनभर ग्लूटेन से पूरी तरह दूरी बनाए रखना,” प्रो. लाल ने स्पष्ट किया।

बचपन में पहचान ज़रूरी

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस रोग की पहचान बचपन में हो जाए तो इलाज की सफलता की संभावना अधिक रहती है। “बड़े होने पर लक्षण छिप जाते हैं और व्यक्ति बिना जाने ही गंभीर नुकसान झेलता रहता है।”

परिवार निभाए अहम भूमिका

उन्होंने कहा, “सीलिएक का प्रबंधन केवल डॉक्टरों के भरोसे नहीं किया जा सकता। पूरे परिवार की भूमिका होती है। माता-पिता, दादा-दादी, स्कूल शिक्षक—सभी को जागरूक होना पड़ेगा। एक छोटी सी चूक भी बड़ी जटिलता का कारण बन सकती है।”

उन्होंने उस बच्ची का उदाहरण दिया जिसे आठ साल पहले सीलिएक की पुष्टि हुई थी, लेकिन परिवार ने उसे गंभीरता से नहीं लिया। “आज वह बच्ची लिवर फेल्योर के करीब थी, और अब दवाओं से संभल रही है। यह बताता है कि सख्ती से डाइट का पालन जीवनभर आवश्यक है।”

क्या है सीलिएक रोग?

यह ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र ग्लूटेन (गेहूं, जौ, राई में पाया जाने वाला प्रोटीन) को दुश्मन मानकर आंतों को नुकसान पहुंचाता है।

इसके लक्षणों में पेट दर्द, दस्त, वजन न बढ़ना, थकान, त्वचा पर चकत्ते, और एनीमिया शामिल हो सकते हैं।

इसका कोई दवा से इलाज नहीं है। जीवनभर के लिए ग्लूटेन फ्री डाइट ही एकमात्र रास्ता है।

शोध के अनुसार, उत्तर भारत में हर 100 में से 1 बच्चा इससे प्रभावित हो सकता है

व्यावहारिक सुझाव और जागरूकता

कार्यक्रम में प्रो. लाल ने अभिभावकों को व्यावहारिक सलाह दी—जैसे कि घरेलू स्तर पर ग्लूटेन-फ्री भोजन तैयार करना, भोजन के समय का अनुशासन बनाए रखना, और बच्चों को बीमारी को समझाने व आत्मनिर्भर बनाने पर ज़ोर देना। “बच्चों को सिखाएं कि वे अन्य बच्चों की नकल न करें, बल्कि अपनी बीमारी को समझें और उसका नेतृत्व करें,” उन्होंने कहा।

विशेषज्ञों से खुला संवाद और रेसिपी डेमो

कार्यक्रम के दौरान ग्लूटेन फ्री रेसिपी का डेमो, डाइट काउंसलिंग, और विशेषज्ञों के साथ प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया। इसमें अभिभावकों, शिक्षकों और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।

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