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Menopause मेनोपॉज से पहले और बाद में हड्डियों की सुरक्षा जरूरी

Menopause  महिलाओं के लिए मेनोपॉज केवल हार्मोनल बदलाव का दौर नहीं, बल्कि हड्डियों की सेहत के लिए भी निर्णायक समय होता है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि मेनोपॉज के बाद शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर घटने से हड्डियाँ तेजी...

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Menopause  महिलाओं के लिए मेनोपॉज केवल हार्मोनल बदलाव का दौर नहीं, बल्कि हड्डियों की सेहत के लिए भी निर्णायक समय होता है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि मेनोपॉज के बाद शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन का स्तर घटने से हड्डियाँ तेजी से पतली होने लगती हैं, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ जाता है। इसका असर सबसे अधिक रीढ़, कूल्हे और कलाई की हड्डियों पर पड़ता है।

सेक्टर 44, चंडीगढ़ की प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. पूनम रुडिंगवा कहती हैं, ‘एस्ट्रोजन हड्डियों के निर्माण और टूटने के बीच संतुलन बनाए रखता है। मेनोपॉज के बाद इसका स्तर कम होने से यह संतुलन बिगड़ जाता है और हड्डियाँ कमजोर होने लगती हैं। यही वजह है कि 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं अधिक जोखिम में होती हैं।’

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वे सलाह देती हैं कि हड्डियों की सुरक्षा की शुरुआत 30 से 40 वर्ष की उम्र में ही कर देनी चाहिए। पेरिमेनोपॉज चरण के दौरान डीईएक्सए स्कैन के माध्यम से हड्डियों की घनत्व जांच कर शुरुआती कमजोरी का पता लगाया जा सकता है। विशेषज्ञ इसे ‘साइलेंट डिज़ीज़’ कहते हैं, क्योंकि यह बिना किसी लक्षण के धीरे-धीरे विकसित होती है और तब सामने आती है जब कोई फ्रैक्चर हो जाता है।

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हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए डॉ. रुडिंगवा ने कुछ सरल जीवनशैली उपाय सुझाए हैं :

  • वजन उठाने वाले व्यायाम करें।
  • कैल्शियम और विटामिन D से भरपूर आहार लें।
  • धूम्रपान और शराब से दूरी बनाए रखें।
  • धूप में समय बिताएं ताकि शरीर को प्राकृतिक विटामिन D मिले।
  • तनाव और नींद पर ध्यान दें।
  • जरूरत पड़ने पर चिकित्सकीय परामर्श से सप्लीमेंट्स लें।

डॉ. रुडिंगवा का कहना है कि ‘जागरूकता और समय पर की गई जांच से महिलाएं न केवल ऑस्टियोपोरोसिस से बच सकती हैं, बल्कि आने वाले वर्षों में भी सक्रिय और आत्मनिर्भर जीवन जी सकती हैं।’

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