पंचकूला, 19 नवंबर (ट्रिन्यू)
ऊर्जा संरक्षण दिवस के अवसर पर हरियाणा साहित्य अकादमी की पहल पर प्रकृति संरक्षण में अमर रचनाकार जगदीशचंद्र माथुर के साहित्य के योगदान को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. विरेन्द्र मेहंदीरत्ता ने कहा कि प्रकृति की अस्मिता का वर्णन ‘कोणार्क’ में जीवंत तरीके से किया गया है। पूर्व गृह सचिव समीर माथुर ने कहा कि मैं उनका पुत्र होने के बाद यह महसूस करता हूं कि समाज का एक बड़ा वर्ग उनसे ज्यादा उनके पिता जगदीशचंद्र माथुर को मानता है। उन्होंने कहा कि जगदीशचंद्र माथुर प्रकृति के सौंदर्य को निहारने के प्रेरक व्यक्तित्व थे। साहित्य अकादमी के निदेशक डाॅ. चन्द्र त्रिखा ने स्वागत करते हुए कहा कि जगदीशचंद्र माथुर की स्मृति को समर्पित विमर्श में हरियाणा के सभी महाविद्यालयों के प्राचार्यों, शिक्षकों एवं साहित्यसुधी नागरिकों की हिस्सेदारी हरियाणा के साहित्यिक समाज का जीवंत दर्शन करा रही है। उन्होंने जगदीशचंद्र माथुर से अपनी सहृदय मुलाकातों का संस्मरण भी सुनाया। विमर्श में विशेष रूप से हिस्सा लेते हुए प्रोफेसर डाॅ. गुरमीत सिंह ने कहा कि उनका विचार हमेशा महत्वपूर्ण रहेगा कि भारतीय लोकतंत्र हिन्दी और भारतीय भाषाओं से ही चलेगा। कार्यक्रम का संयोजन जनसंपर्क अधिकारी एवं संस्कृतिकर्मी राजीव रंजन ने किया। यह वेबिनार श्रृंखला 14 दिसम्बर तक जारी रहेगी। इस विमर्श मेें डा. अनुपम अरोड़ा प्राचार्य एसडी पीजी कालेज पानीपत, डा. राजेन्द्र प्रसाद प्राचार्य एसडी पीजी कालेज अम्बाला, डा. आरपी सैनी प्राचार्य डीएवी कालेज करनाल, डा. रेखा शर्मा प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय करनाल, डा. चन्द्रशेखर प्राचार्य दयाल सिंह करनाल आदि ने हिस्सा लिया।