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अजब नाम, गजब नक्काशी... रंग-रूप में पूरी ताजगी

नेशनल सिल्क एक्सपो में कपड़ों की अनेक रेंज

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केवल तिवारी/ट्रिन्यू

चंडीगढ़, 6 जुलाई

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अजरक। सिबोरी। बगरू। बांदनी। किंगखाब। मालवारी। जायावार। जामदनी। सुने होंगे ये नाम। नहीं सुने तो पढ़ते चलिए। इन्हें बनाने में अनार के छिलके, दाने और पेड़ों की छाल का इस्तेमाल होता है। इनके छापों में दवाओं की तरह अलग-अलग सॉल्ट का प्रयोग होता है। ये कपड़े ऐसे कि वातानुकूलित से लगें। पैक करेंगे तो जरा सी जगह घेरेंगे। जी हां, ये कपड़े ही हैं। गजब की कारीगरी। ज्यादातर सिल्क के। इनकी कारीगरी, नक्काशी देखनी हो, छपाई के डिजाइन समझने हों तो चले जाइये चंडीगढ़ के सेक्टर 28 स्थित हिमाचल भवन में। इन दिनों यहां 'नेशनल सिल्क एक्सपो' चल रहा है। 'वेडिंग समर स्पेशल एक्जिबिशन कम सेल' के तहत यहां देशभर से कारीगरों का जमावड़ा है। एक से बढ़कर एक प्रोडक्ट। प्रत्येक की अपनी अलग ही खासियत।

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एक्सपो में गुजरात के कच्छ से आईं स्वाति बताती हैं कि उनकी खास सिबोरी और बागरू साड़ी को आप हर्बल कह सकते हैं। बनारस से नेशनल अवार्डी अबुल हसन का सिल्क साड़ियों का बहुत पुराना कारोबार है। उनके भतीजे वसीम विभिन्न साड़ियों को दिखाते हुए कहते हैं, 'असम से लाया गया मूंगा सिल्क के धागों से बनारस में बुनाई होती है। एक-एक साड़ी को बनाने में महीनों लग जाते हैं।' जायावार और जामदनी साड़ी को दिखाते हुए उन्होंने कहा कि इस साड़ी को चाहें जितनी बार अलग-अलग रंगों में रंग सकते हैं। यानी एक ही साड़ी को विभिन्न शेड में पहनते रहिए। इसी तरह बनारस से ही आए फैजल और मुश्ताक बताते हैं मलवरी साड़ी के बारे में जो बेहद सफ्ट रहता है। लखनऊ से यहां पहुंची रिमशा चिकन के कपड़ों की विस्तृत रेंज के बारे में बताती हैं। तमिलनाडु के कांचीपुरम से आए राना हैंडमेड सिल्क साड़ी को दिखाते हैं जिसकी कीमत 1.2 लाख है। वह कहते हैं शोरूम में यही साड़ी दो लाख की मिलेगी। इसी तरह रामकिशन धारा बताते हैं कांथा के बारे में। वह गुजराती गुदड़ी को भी दिखाते हैं जो अलग-अलग शेड और रंग में हैं। विभिन्न कारीगरों, उनसे जुड़े लोगों को एक मंच पर लाकर इस एक्सपो के ऑर्गनाइजर जयेश कुमार गुप्ता बताते हैं कि उत्पाद को सीधे लोगों तक पहुंचाने के कारण यहां तमाम चीजें शोरूम कीमत से कई गुना कम में मौजूद हैं।

छपाई करने वालों का सरनेम ही हो गया छीपा

राजस्थान से आए अशोक छीपा अपने विभिन्न उत्पादों को दिखाते हुए बताते हैं कि उनका उपनाम छपाई के व्यवसाय के कारण पड़ा। परंपरागत छापों के अलावा ये लोग विशेष डिमांड पर भी छपाई करते हैं। वह बताते हैं कि रंग बनाने से लेकर विभिन्न तरह की मिट्टी एवं सॉल्ट के जरिये एक-एक कपड़े को तैयार करने में 12 से 15 दिन लगते हैं। कई बार रंग तैयार करने में महीनों लग जाते हैं। फिर ये रंग इतने पक्के हो जाते हैं कि जितनी बार धोएं उतना रंग निखरेगा। अशोक छीपा अलग-अलग तरह के सूट और दुपट्टा दिखाते हैं।

11 जुलाई तक चलेगी प्रदर्शनी

यह प्रदर्शनी 6 से 11 जुलाई तक सुबह 11 से रात 9 बजे तक खुली रहेगी। बताया गया कि नेशनल सिल्क एक्सपो उन लोगों के लिए एक शानदार मौका है जो आने वाले त्योहारों-तीज, रक्षा बंधन, शादियों, या अन्य विशेष अवसरों के लिए शुद्ध रेशम खरीदना चाहते हैं या केवल नियमित उपयोग के लिए कुछ अच्छा खरीदना चाहते हैं। यहां रेशम की साड़ियों, सलवार सूट, दुपट्टे, स्टोल और अन्य टेक्सटाइल मटीरियल का नवीनतम संग्रह और शानदार रेंज आपको एक छत के नीचे देखने को मिलेगी। बिहार की जटिल मधुबनी प्रिंट वाली साड़ियां नेशनल सिल्क एक्सपो के मुख्य आकर्षण में से हैं। वेडिंग समर स्पेशल “नेशनल सिल्क एक्सपो” के इस संस्करण में 100 से अधिक डिज़ाइनर और बुनकर अपना बनाया हुआ सामान लेकर पहुंचे है जिसमें भारत के 14 हथकरघा बुनाई वाले राज्यों के कारीगर 1,50,000 से अधिक किस्मों को आगंतुकों के लिए प्रदर्शित कर रहे हैं।

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