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AIBOC की चेतावनी : RBI का AI ढांचा बिना संवाद लागू हुआ तो बढ़ेगा संकट

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के प्रस्तावित “कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जिम्मेदार और नैतिक उपयोग को सक्षम बनाने का ढांचा (फ्री-एआई)” पर कड़ी आपत्ति जताई है। परिसंघ का कहना है कि यदि इसे बिना व्यापक...
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अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के प्रस्तावित “कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जिम्मेदार और नैतिक उपयोग को सक्षम बनाने का ढांचा (फ्री-एआई)” पर कड़ी आपत्ति जताई है। परिसंघ का कहना है कि यदि इसे बिना व्यापक संवाद और सुरक्षा उपायों के लागू किया गया, तो यह उपभोक्ताओं, कर्मचारियों और सार्वजनिक बैंकों के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकता है।

एआईबीओसी के महासचिव रूपम रॉय ने स्पष्ट किया कि संगठन तकनीक विरोधी नहीं, बल्कि जन-समर्थक है। उनका कहना है कि तकनीक जनता के विश्वास का विकल्प नहीं हो सकती। आरबीआई द्वारा प्रस्तावित सात सूत्र—विश्वास, लोगों को प्राथमिकता, निष्पक्षता, जवाबदेही, समझदारी, सुरक्षा और नवाचार—निश्चित रूप से सराहनीय हैं, लेकिन इन्हें ठोस अधिकारों और सुरक्षा प्रावधानों में बदले बिना जोखिम और असमानता और बढ़ जाएगी।

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एआईबीओसी की प्रमुख चिंताएं

जवाबदेही का संकट : एआई मॉडल की गड़बड़ी का ठीकरा कर्मचारियों पर फोड़ने की आशंका।

तकनीकी खतरे : पूर्वाग्रह, मॉडल ड्रिफ्ट, डेटा दुरुपयोग और साइबर हमलों का बढ़ा जोखिम।

समान अवसर का अभाव : साझा अवसंरचना न होने से निजी बैंकों को अनुचित बढ़त मिल सकती है।

ग्राहक अधिकार : उपभोक्ताओं को मानवीय समीक्षा और स्पष्ट स्पष्टीकरण का अधिकार मिलना चाहिए; केवल एल्गोरिद्म आधारित निर्णय पर्याप्त नहीं।

रोज़गार सुरक्षा : नो-फोर्स्ड लेऑफ, अपस्किलिंग और कर्मचारियों के कार्यभार व स्वास्थ्य की निगरानी अनिवार्य हो।

एआईबीओसी की मांगें

एआईबीओसी ने वैश्विक उदाहरणों का हवाला देते हुए बताया कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और अन्य देशों की यूनियनें भी एआई लागू करने से पहले रोजगार सुरक्षा, प्रशिक्षण और पारदर्शिता की गारंटी मांग रही हैं।

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