मुंबई, 2 जून (एजेंसी) बढ़ती मुद्रास्फीति के बीच देश की राजकोषीय नीति के मौद्रिक नीति के साथ तालमेल बैठाने और बढ़ती सब्सिडी के बीच कदम उठाने से एकीकृत राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 10.2 प्रतिशत के ऊंचे स्तर पर रह सकता है। एक साल पहले की तुलना में यह 0.20 प्रतिशत कम होगा। यूबीएस सिक्योरिटीज ने बृहस्पतिवार को जारी एक रिपोर्ट में राजकोषीय घाटा कम करने के लिए सख्य नीतिगत कदमों की जरूरत पर जोर दिया। रिपोर्ट के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में केंद्र का घाटा 6.7 प्रतिशत और राज्यों का 3.5 प्रतिशत रह सकता है। सरकार ने वर्ष 2022-23 के लिए केंद्र एवं राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा 9.8 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है जिसमें केंद्र का घाटा 6.4 प्रतिशत और राज्यों का 3.4 प्रतिशत रहने की बात कही गई है। रिपोर्ट कहती है कि सख्य मौद्रिक कदम आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के दबाव को लगभग 0.50 प्रतिशत तक कम करने में मदद कर सकते हैं। लेकिन जिंसों की वैश्विक कीमतों में नरमी नहीं आने तक मुद्रास्फीति को रिजर्व बैंक के संतोषजनक स्तर (चार प्रतिशत से दो प्रतिशत कम या अधिक) के भीतर लाने के लिए ये कदम पर्याप्त नहीं होंगे। ब्रोकरेज फर्म यूबीएस सिक्योरिटीज की मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) तन्वी गुप्ता जैन ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मु्द्रास्फीति औसतन 6.5-7 प्रतिशत रहने पर रिजर्व बैंक इस वित्त वर्ष के अंत तक रेपो दर को क्रमिक रूप से बढ़ाते हुए 5.5 प्रतिशत तक ले जा सकता है। वहीं वर्ष 2023-24 के अंत तक रेपो दर को रिजर्व बैंक छह प्रतिशत तक कर सकता है।
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।