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राम नाम की औषधि से कल्याण

प्रभा पारीक गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य का तन खेत है और मन, वचन, कर्म किसान हैं। जैसे किसान बीज बोता है वैसे ही हम मन, वचन और कर्म से बीज बोते हैं। वे बीज जिन्हें हम बोते...
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प्रभा पारीक

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि मनुष्य का तन खेत है और मन, वचन, कर्म किसान हैं। जैसे किसान बीज बोता है वैसे ही हम मन, वचन और कर्म से बीज बोते हैं। वे बीज जिन्हें हम बोते हैं वे पाप और पुण्य के दो बीज हैं। इंसान अपने जीवन रूपी खेत में इन दो बीजों को बोता है एक पाप का बीज और दूसरा पुण्य का बीज। पाप का बीज ही आगे चलकर क्लेश का मूल और पुण्य का बीज कष्टप्रद होते हुए भी शांति और संतोष का देने वाला है।

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तुलसी यह तन खेत हैं मन, वचन, कर्म किसान।

पाप पुन्य दो बीज हैं बोए सो लेय नादान॥

इसलिये अपनी वाणी से पाप के नहीं पुण्य के बीज बोयें। आप जो भी पाप व पुण्य की खेती कर रहे हैं, है तो बहुत आसान पर जब फसल काटने की बारी आती है तब बहुत कठिनाई होती है। अगर हमने बबूल के बीज बोये हैं तो खेत में कांटे ही उगेंगे, वहां पांव भी रखना चाहोगे तो नहीं रख पाओगेे। इसलिये बीज बो लेना आसान है पर जब वह अंकुरित होकर वृक्ष बनकर सामने आता है तो पता चलता है कि वह बीज कितना भयंकर रूप लेकर सामने आया है। उस समय उससे बच पाना, अपने जीवन से उसे निकाल भगाना कठिन हो जाता है। जैसे रस्सी के हल्के रेशों को आप फूंक मार कर उड़ा सकते हो पर रस्सी में बंट जाने के बाद उससे हम हाथी को भी बांधने में कामयाब हो जाते हैं।

श्रीराम ने अपने जीवन में चाहे कितने भी कष्टों का सामना किया लेकिन सरल होते हुए भी गलत रास्ता नहीं अपनाया। माता कैकेयी के दिए वनवास को भी उन्होंने स्वयं के लिए माता-पिता के प्रति कर्तव्य पालन ही समझा। समाज का भला करने की भावना के कारण कार्य-क्षेत्र का विस्तार मान कर वन में भी आगेे बढ़ते गये। जहां श्रीराम को लगा कि लोगों को उनके सहयोग की आवश्यकता है, सहर्ष सहयोग के लिएे दौड़ पड़े। मानव रूप में जन्म लेने के कारण सभी सांसारिक कष्टों का सामना मर्यादा में रहकर सत्य की राह पर चलते हुए किया। तभी तो किसी भी मर्यादा का उल्लंघन न करने के कारण मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। यहां तक कि अपने साथ रह रहे लोगों को भी मर्यादा में बंधे रहकर काम करने की शिक्षा दी। इसीलिए श्रीराम आज हमारे सामाजिक व्यवस्था के लिए नैतिकता के दृढ़ स्तंभ हैं। भगवान राम के मार्ग और सिद्धांतों का अनुसरण करने वालों के लिए कोई भी मार्ग कठिन नहीं है। श्रीराम को सदैव साफ मन और छल-कपट विहीन जीवन जीने वाले लोग ही प्रिय रहे हैं। श्रीराम ने कहा, मुझे पाने का अर्थ हैं सांसारिक क्लेशों से मुक्ति और इसके लिए मन की शुद्धता आवश्यक है। रामचरितमानस के सुंदरकांड का दोहा है जिसके अनुसार राम कहते हैं कि ‘निर्मल मन जन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा।’ उपरोक्त दोहा भगवान श्रीराम ने विभीषण को शरणागति के अवसर पर कही थी।

अयोध्या जैसा देश नहीं है। राजा दशरथ समान पिता नहीं है। कोशल्या समान माता नहीं है, आज श्रीराम जैसा राज्य नहीं है। भरत समान भाई नहीं है पर वही पृथ्वी है तो उस समय भी अधर्म के कारण त्राहिमाम कर उठी थी... और वही मानव तन है जिस रूप में भगवान राम ने धर्म की स्थापना के लिए मानव रूप में अवतार लिया था। आवश्यकता है भगवान राम के चरित्र को समझने की, जानने की और जीवन में उतारने की। तभी हम राम नामरूपी औषधि से जीवन के सभी क्लेशों से मुक्ति पा सकेंगे।

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