किसी नगर में एक पहुंचे हुए संत रहते थे। उनकी आध्यात्मिक शक्तियों के कारण उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली थी। उनके भक्तों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी। एक दिन उन्होंने अपना घर बसाने की सोची और अपने नगर की सबसे अधिक अनपढ़, फूहड़ और अत्यधिक क्रूर स्वभाव की एक महिला से विवाह कर लिया। कुछ समय बाद एक महात्मा जी उनके घर आये। महात्मा जी जब तक संत के घर रहे तो उन्होंने देखा कि संत की पत्नी बात-बात पर उन्हें डांटती-फटकारती रहती है और वे चुपचाप उसकी डांट को सह लेते हैं। उन महात्मा जी से रहा न गया और वे संत से पूछ बैठे, ‘आपने ऐसे स्वभाव वाली स्त्री से कैसे विवाह कर लिया?’ संत ने मुस्कुराकर उत्तर दिया, ‘महाराज, मैंने इतनी तपस्या, इतना चिंतन-मनन करने के बाद संसार की वास्तविकता को पहचान लिया है। मैंने इस स्त्री से इसलिए विवाह किया है कि जब तब यह मुझे झिड़कती रहती है तो मैं अहंकार से बचा रहता हूं और मेरी आध्यात्मिकता को बल मिलता है। दूसरे, इसलिए कि मेरे चरित्र से प्रभावित होकर यह स्त्री अपना स्वभाव बदल दे।’
प्रस्तुति : पुष्पेश कुमार पुष्प