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व्रत से त्रिदेव आराधना का पुण्य

उत्पन्ना एकादशी 26 नवंबर
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चेतनादित्य आलोक

हिंदू पंचांग के अनुसार सामान्यतः एक कैलेंडर वर्ष में कुल 24 एकादशियां होती हैं। गौरतलब है कि शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी की रात आकाश में चंद्रदेव लगभग 75 प्रतिशत दिखाई देते हैं, जबकि कृष्ण पक्ष में इनका आकार लगभग 25 प्रतिशत का हो जाता है। एकादशी देवी के भगवान श्रीहरि विष्णु की एक शक्ति का रूप होने के कारण सनातन धर्म में सभी ‘एकादशी’ व्रतों का विशेष महत्व होता है। वहीं, ‘उत्पन्ना एकादशी’ सनातन धर्मावलंबियों द्वारा अगहन या मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष में किया जाने वाला अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन एकादशी देवी के अवतरित होने के कारण इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस व्रत का एक नाम ‘उत्पत्ति एकादशी’ भी है।

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इस वर्ष उत्पन्ना एकादशी का व्रत 26 नवंबर मंगलवार को रखा जाएगा, जबकि व्रत का पारण अगले दिन 27 नवंबर बुधवार को दोपहर 01ः12 से 03ः18 बजे के बीच कभी भी किया जा सकता है, किंतु पारण से पूर्व योग्य ब्राह्मणों को दक्षिणा देने एवं निर्धनों और जरूरतमंद व्यक्तियों को यथाशक्ति दान अवश्य करना चाहिए। बता दें कि पारण हमेशा तुलसी-पत्र से करना शुभ होता है।

एकादशियों में प्रथम

कार्तिक पूर्णिमा के बाद आने तथा इसी दिन एकादशी देवी के अवतरित होने के कारण उत्पन्ना एकादशी सभी एकादशियों में प्रथम मानी जाती है और यही कारण है कि जो भक्त एकादशी व्रत रखने की शुरुआत करना चाहते हैं, वे उत्पन्ना एकादशी से ही इसका आरंभ करते हैं। हिंदू वैदिक शास्त्रों में उत्पन्ना एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है।

इसके अतिरिक्त, लोक कथाओं में भी इसकी उपस्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। इसका प्रारंभिक उल्लेख भविष्योत्तर पुराण के युधिष्ठिर और भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुए संवाद में मिलता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार उत्पन्ना एकादशी व्रत का उपवास रखने वाले भक्तों के न केवल वर्तमान जीवन, बल्कि पूर्वजन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। साथ ही, व्रतियों के जीवन में चल रहे संकट भी दूर होते हैं तथा उनके मनोरथ भी सिद्ध होते हैं। शास्त्रों में इस व्रत का महत्व संक्रांति जैसे शुभ आयोजनों के बराबर बताया गया है। इस दिन व्रत करने से त्रिदेव यानी ब्रह्मा, श्रीविष्णु और महेश के लिए व्रत करने का पुण्य मिलता है। उत्पन्ना एकादशी के व्रत में भगवान श्रीहरि विष्णु के अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण तथा माता एकादशी की भी श्रद्धापूर्वक पूजा करनी चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भक्त उत्पन्ना एकादशी की पूर्व संध्या पर माता एकादशी और भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें एकादशी व्रत का चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होता है।

एकादशी का व्रत भगवान श्रीविष्णु को समर्पित होता है। इसलिए उनको प्रसन्न करने के लिए एकादशी के विशेष मंत्रों का जाप करना चाहिए। हालांकि, जो भक्त एकादशी का व्रत नहीं करते हैं, वे भी यदि स्वच्छता का पालन करके पूजा के समय भगवान श्रीविष्णु का स्मरण करते हुए निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें तो वे भी भगवान श्रीविष्णु की कृपा अवश्य प्राप्त करेंगे :-

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः

यह मंत्र भगवान श्रीविष्णु का सर्वोत्तम मंत्र माना जाता है। एकादशी के दिन 108 बार इस मंत्र का जाप करने से भगवान अति प्रसन्न होते हैं, और अपने भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं।

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने

प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः

इस मंत्र के शुभ प्रभाव से जीवन के आंतरिक एवं पारिवारिक क्लेश दूर हो जाते हैं। मानसिक दुविधाओं से निजात पाने के लिए भी इस मंत्र का जाप किया जाता है।

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