मुख्य समाचारदेशविदेशखेलबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाफीचरसंपादकीयआपकी रायटिप्पणी

हार में जीत

एकदा
Advertisement

सुप्रसिद्ध दार्शनिक लाओत्से ने एक बार अपने मित्रों से कहा, ‘मुझे ज़िंदगी में कोई भी हरा नहीं सका।’ यह सुनकर एक मित्र ने तुरंत उत्सुकता से पूछा, ‘वह राज़ हमें भी बताओ, क्योंकि हम भी जीवन में जीतना चाहते हैं।’ यह सुनकर लाओत्से ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा। फिर बोला, ‘तुम नहीं समझ सकोगे उस राज़ को, क्योंकि तुमने मेरी बात पूरी सुनी ही नहीं। तुम तो बीच में ही ठहर गए। मैंने कहा था – ‘मुझे ज़िंदगी में कोई हरा नहीं सका, पर...’ वाक्य तो पूरा होने दो। फिर लाओत्से ने वाक्य पूरा करते हुए कहा, ‘मुझे ज़िंदगी में कोई हरा नहीं सका, क्योंकि मैं पहले से ही हारा हुआ था। मुझे जीतना कभी था ही नहीं, इसलिए मेरा हारना भी नामुमकिन था। जिसने जीत की आकांक्षा छोड़ दी, वह कभी हार नहीं सकता। और जिसने सफलता की ज़्यादा लालसा की, वह अंततः असफलता की ओर ही बढ़ता है।’ यह सुनकर वह मित्र चुप रह गया – सोच में डूबा हुआ।

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

Advertisement

Advertisement