एक युवक ने संत से पूछा, ‘क्या आप जानते हैं कि भगवान कहां मिलेंगे?’ संत ने गंभीर होकर कहा, ‘तुम अगर यही मान बैठे हो कि पूजा स्थलों व तीर्थस्थलों में ही मिलेंगे तो यह भ्रम है, परमात्मा मिलेंगे तो हमारे अंदर ही क्योंकि जहां है, वहीं तो मिलेंगे। लेकिन हम बाहरी यात्रा ही करते है, उसे पाने के लिए। अंदर हमने कभी झांका ही नहीं, जिस क्षण हम अंदर की यात्रा आरम्भ करेंगे, यानी हम शांत मन से साक्षी भाव को, दृष्टा भाव को शामिल करेंगे, तब हमें उसकी अनुभूति होने लगेगी। इसका अर्थ यह नहीं है कि पूजा स्थलों पर न जायें, जायें पर ये न समझें कि बस हो गयी उसकी प्रार्थना, अब और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। पूजा स्थलों पर जाने का बस इतना ही महत्व है कि हमारा मन शांत हो जाये। इससे हमारा अहंकार खत्म होगा। यह भावना नहीं आनी चाहिए कि मैं बहुत बड़ा धार्मिक हूं, पूजा-पाठी हूं कि मैंने बहुत बड़ा तीर्थ कर लिया है। इससे मन और अधिक अशांत होगा। बस तीर्थ का लाभ मन को शांत करने में ही करना है। जब मन शांत हो जायेगा, तभी अंदर की यात्रा आरम्भ हो सकती है और तभी उस परम की अनुभूति होगी। प्रस्तुति : सुभाष बुड़ावनवाला