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क्रांति की सार्थकता

एकदा
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एक बार सरदार वल्लभभाई पटेल बिहार में सभा को संबोधित कर रहे थे। वहां उपस्थित अधिकांश युवा उन्हें देखते ही बोले, ‘क्रांति की जय।’ जब युवा चुप हो गए तो पटेल शांत स्वर में बोले, ‘क्या आप क्रांति का अर्थ जानते हैं? एक बार क्रांति करके दिखाइए, उसके बाद उसकी जय के नारे लगाइए, जिसका अस्तित्व ही न हो उसकी जय-जयकार से क्या मतलब?’ यह सुनकर एक युवा बोला, ‘क्या अभी तक हमारे देश में कभी क्रांति नहीं हुई?’ पटेल बोले, ‘हां, हुई है, अवश्य हुई है लेकिन पूरे देश में क्रांति कभी नहीं हुई। यहां चंपारण की क्रांति हुई थी। उसी के आधार पर हमारा नाम देश-विदेशों में प्रसिद्ध हुआ।’ दूसरा युवा बोला, ‘पूरे देश में क्रांति की जय कब होगी?’ पटेल बोले, ‘क्रांति के लिए आपको दकियानूसी रस्मो-रिवाज से बाहर आकर स्वयं को मजबूत बनाना होगा। प्रत्येक युवा को यह मन में ठानना होगा कि उसे भीड़ का हिस्सा नहीं बनना है, बल्कि स्वयं को इस काबिल बनाना है कि वह जहां खड़ा हो जाए वहां भीड़ लग जाए। देश के प्रति समर्पण एवं प्रेम की इच्छा आपको यह हक देती है कि आप ‘क्रांति की जय’ बोलें।’ युवा जोश से बोले, ‘हम सब अपने अंदर देश प्रेम की भावना को विकसित करेंगे। देश पर सर्वस्व न्योछावर करने के लिए स्वयं को तैयार करेंगे।’ पटेल बोले, ‘बस फिर वह दिन दूर नहीं जब हम सभी एक स्वर में बोलेंगे, ‘क्रांति की जय।’

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