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बचत की तार्किकता

एकदा
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एक बार शाम के समय प्रसिद्ध लेखक जॉन मूर अपने अध्ययन कक्ष में बैठे, दो मोमबत्तियां जलाकर लेखन कार्य में लगे हुए थे। तभी उनके द्वार पर दस्तक हुई। बाहर दो महिलाएं खड़ी थीं। वे किसी कार्य के लिए चंदा लेने आई थीं। जॉन मूर ने उनसे बातचीत करने से पहले, धीरे से उन दो में से एक मोमबत्ती बुझा दी। यह देखकर दोनों महिलाएं मन ही मन सोचने लगीं, ‘यहां से चंदा मिलना तो मुश्किल है। जो व्यक्ति हमारे आने पर एक दीपक बुझा रहा है, उसके पास भला पैसे कहां होंगे?’ उन्होंने साहस कर अपना उद्देश्य बताया और चंदे की बात की। जॉन मूर ने बिना किसी संकोच के तुरंत उन्हें 100 डॉलर दे दिए। यह देखकर महिलाएं आश्चर्यचकित रह गईं। उन्होंने कहा, ‘हमने तो सोचा था कि आप हमें कुछ नहीं देंगे। जब आपने मोमबत्ती बुझाई, तो हमें लगा कि आप बहुत मितव्ययी हैं। किंतु आपने तो हमारी सोच ही बदल दी!’ जॉन मूर मुस्कुराते हुए बोले, ‘आपको यह 100 डॉलर देने में मैं इसलिए सक्षम हूं, क्योंकि मैं अनावश्यक खर्च से बचता हूं। आपसे बातचीत के लिए एक मोमबत्ती का प्रकाश पर्याप्त था, दूसरी को जलाकर ऊर्जा और साधन दोनों की बर्बादी होती। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है — और छोटी-छोटी बचत से ही बड़ी पूंजी बनती है।’ उन दोनों महिलाओं को वहां से न केवल अपेक्षित चंदा मिला, बल्कि जीवन भर याद रहने वाली एक सीख भी मिली — बचत का महत्व समझ में आ गया।’

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