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संस्कारों की ताकत

एकदा
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एक बार हाईस्कूल का एक छात्र अपने विद्यालय भ्रमण के दौरान उन स्थलों से रूबरू हुआ, जहां प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी शहीद हुए थे। भावुक और गद्गद छात्र अपने शिक्षक से चर्चा करके, शहीदों की वीरगाथाएं सुनकर और आसपास लगे कुछ पौधों की जानकारी प्राप्त करके शहीद स्थल के चबूतरे की सीढ़ियां उतरता है। फिर अपना जूता पहन लेता है। सामने पार्क की पतली सड़क पर पड़ी सीमेंट की बेंच पर वह बैठ जाता है और फिर से प्रतिमा को देखता है। इस बीच, वह देखता है कि तीन-चार लोग शहीद स्थल की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, उनमें से एक हैटधारी व्यक्ति हाथ में कैमरा पकड़े हुए है, और कुछ लोग सिगार पी रहे हैं। जूते-चप्पल पहने हुए ये लोग प्रतिमा के बिल्कुल पास जाकर खड़े हो जाते हैं। छात्र उनके पास जाता है और कहता है, ‘आपको नंगे पैर आना चाहिए था, यह सही नहीं है। पवित्रता के दृष्टिकोण से ही, ऐसे स्थलों पर जूते-चप्पलें पीछे छोड़नी चाहिए।’ यह बालक आगे जाकर एक प्रसिद्ध कैमरामैन बना और कुछ समय बाद महान फिल्मकार सत्यजीत रे के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुआ।

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