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दया-करुणा से प्रशस्त धर्म-पथ की राह

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि व्यक्ति में दया का भाव न हो तो संसार में अधर्म, आतंक, अनाचार व अत्याचार का बोलबाला हो जाए और चारों ओर हिंसा ही हिंसा दिखाई देने लगे। सनातन धर्म...
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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि व्यक्ति में दया का भाव न हो तो संसार में अधर्म, आतंक, अनाचार व अत्याचार का बोलबाला हो जाए और चारों ओर हिंसा ही हिंसा दिखाई देने लगे।

सनातन धर्म में दया को धर्म का मूल तत्व बताया गया है। ‘दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।’ महाभारत काल का एक प्रसंग है, जब धर्मराज युधिष्ठिर ने एक सत्संग के दौरान महर्षि मार्कण्डेय से प्रश्न किया कि सर्वोत्तम धर्म क्या है? तब महर्षि ने धर्मराज की जिज्ञासा का समाधान करते हुए बताया कि क्रूरता का अभाव अर्थात दया सबसे महान धर्म है और दया व करुणा की भावना रखने वाला व्यक्ति ही धर्मात्मा और ज्ञानी होता है। महर्षि मार्कण्डेय के समान ही सनातन धर्म के प्रायः सभी धर्मग्रंथों, धर्मगुरुओं, साधु-संतों, आचार्यों व कथाकारों ने दया के उदात्त स्वरूप को परिभाषित किया है।

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न केवल सनातन धर्म बल्कि संसार के लगभग सभी अन्य धर्म भी प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखने का संदेश देते हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यदि व्यक्ति में दया का भाव न हो तो संसार में अधर्म, आतंक, अनाचार व अत्याचार का बोलबाला हो जाए और चारों ओर हिंसा ही हिंसा दिखाई देने लगे।

दया का भाव मानवीय गुणों में सबसे प्रथम व सबसे अहम है। वर्तमान में हम बहुतायत में ऐसे लोगों को देखते हैं जो किसी न किसी समस्या से दो-चार हो रहे हैं। समस्याओं का स्वरूप आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक या शारीरिक कुछ भी हो सकता है। हममें से कई लोग ऐसे हैं जो अकेलेपन या अवसाद की समस्या से जूझ रहे हैं। समाज में संयुक्त परिवार के विघटन और एकाकी परिवार के बढ़ते चलन से यह समस्या अपनी विकरालता के साथ तेजी से बढ़ रही है। बड़ी संख्या में बुजुर्ग इस तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं, जिन्हें हमारे दया भाव अर्थात सहानुभूति व प्रेम की अत्यंत आवश्यकता है। यदि कोई बुजुर्ग व्यक्ति किसी अत्यंत व्यस्त मार्ग पर सड़क पार करना चाहते हों लेकिन अपनी कमजोरी और व्यस्त ट्रैफिक के कारण ऐसा नहीं कर पा रहे हों, और आप उन्हें हाथ पकड़कर सड़क पार करा देते हैं, तो आपकी सहानुभूति पाकर उन बुजुर्गों को जो खुशी मिलेगी, उसका मूल्य आप समझें या न समझें, लेकिन विश्वास कीजिए, इसके बदले में आपको बुजुर्गों की जो दुआएं मिलेंगी, निश्चित रूप से वह आपके प्रारब्ध को सुधारने का ही काम करेंगी।

अतः बुजुर्गों के साथ-साथ ऐसे किसी भी प्रकार की समस्या से जूझ रहे लोगों के प्रति यदि हम दया का भाव अपनाते हुए उनकी सहायता या सहयोग करते हैं तो हम धर्म का ही काम करते हैं। यदि हम किसी समस्याग्रस्त या जरूरतमंद व्यक्ति की उचित सहायता या सहयोग करने में सक्षम न हों या असमर्थ हों, तब भी हम ऐसे लोगों के प्रति दया का भाव रखते हुए उनसे सहानुभूति व प्रेम तो दिखा ही सकते हैं। ऐसी सहानुभूति व प्रेम के दो बोल उनके आकुल-व्याकुल मनोमस्तिष्क के लिए एक मरहम का काम करते हैं।

हमारे या परिवार के पास ऐसी कोई वस्तु या सामग्री हो जो हमारे लिए अनुपयोगी या अधिक हो, तो हमें उसे दया व परोपकार का भाव अपनाते हुए किसी जरूरतमंद तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए। घर में भोजन के बाद बची खाद्य सामग्री किसी भूखे को खिलाने पर उसकी तृष्णा को जो संतुष्टि व शांति मिलेगी और उसके बदले में आपको जो दुआएं मिलेंगी, वे आपके पूर्व जन्मों के पाप को भी धो सकने में सक्षम होती हैं। न केवल मनुष्य बल्कि पशु-पक्षियों के लिए भी दया व करुणा का यही भाव हमारे मन में होना चाहिए।

दया, करुणा व परोपकार की भावना रखते हुए हम किसी समस्या या संकटग्रस्त व्यक्ति की सहायता व सहयोग करते हैं या फिर उनके प्रति सहानुभूति व प्रेम प्रदर्शित करते हैं, तो सामने वाले व्यक्ति को राहत व शांति मिलती है। ऐसा करने से हमें भी वह अपार खुशी व सुख मिलता है, जिसके लिए हममें से अधिकांश तरस रहे होते हैं या जिसकी तलाश में भटक रहे होते हैं। अतः दया, करुणा व परोपकार के मानवीय गुणों को जीवन में आत्मसात करते हुए दीन-दुखियों की सेवा, सहायता और सहयोग का मार्ग यदि हम अपनाते हैं तो समझिए हम अपने पुण्य प्राप्ति के द्वार को खोलने के लिए धर्मपथ पर आगे बढ़ रहे हैं।

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