मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

श्रीकृष्ण की शिक्षा, प्रेम और पराक्रम की भूमि

अवंति नगरी
Advertisement

उज्जयिनी, क्षिप्रा के तट पर बसी वह पावन नगरी है जहां भगवान श्रीकृष्ण ने न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि जीवनसंगिनी भी पाई। सांदीपनि आश्रम की स्मृतियों से लेकर मित्रविंदा संग विवाह की कथा तक, यह भूमि श्रीकृष्ण की लीला का साक्षी बनी हुई है।

पुण्यसलिला क्षिप्रा के तट पर स्थित उज्जयिनी भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षास्थली रही है। यहां पर महर्षि सांदीपनि के आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण ने अपने बड़े भाई बलराम व मित्र सुदामा के साथ सोलह कलाएं एवं चौसठ विद्याओं की शिक्षा ग्रहण की थी। उनके शिक्षाकाल से जुड़ी स्मृतियां यहां अंकपात क्षेत्र में एवं समीपस्थ ग्राम नारायणा (ग्राम पानबिहार के पास) आज भी मौजूद हैं।

Advertisement

श्रीकृष्ण की ससुराल

भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा और उज्जैन से जुड़ा उक्त महत्वपूर्ण तथ्य लगभग सर्वविदित है। लेकिन उज्जयिनी अर्थात‍् उज्जैन भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल भी है, यह बात हममें से बहुत कम लोग जानते हैं। उज्जयिनी द्वापर युग में अवंति जनपद के रूप में विख्यात थी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों — रुक्मिणी, जाम्बवती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रविंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा— में से एक मित्रविंदा, अवंति जनपद अर्थात उज्जैन की राजकुमारी थीं।

मित्रविंदा का परिचय

पौराणिक संदर्भ के अनुसार मित्रविंदा, अवंति के राजा जयसेन व भगवान श्रीकृष्ण की बुआ राजाधिदेवी की पुत्री थीं। राजाधिदेवी, भगवान श्रीकृष्ण के दादा राजा शूरसेन की पांच पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री और वासुदेव व महारानी कुंती की बहन थीं।

राजकुमारी मित्रविंदा के दो भाई थे— विंद और अनुविंद। दोनों भाइयों की अपने मौसेरे भाई पांडव पुत्रों से किसी प्रकार की शत्रुता का कोई उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण से निकटता के चलते उन्हें पांडवों से स्वभावगत ईर्ष्या तथा दुर्योधन से प्रगाढ़ मित्रता थी।

पौराणिक संदर्भों के अनुसार महाभारत युद्ध में दोनों भाई कौरव सेना में शामिल हुए थे। वे दो अक्षौहिणी सेनाओं के साथ रणभूमि में उतरे और युद्ध में अपनी वीरता का परिचय दिया। युद्ध में दोनों भाइयों के अर्जुन के हाथों मारे जाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है।

स्वयंवर और हरण

मित्रविंदा के ये दोनों भाई, मित्रविंदा का विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध दुर्योधन से करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने स्वयंवर का आयोजन किया और बहन मित्रविंदा को समझाया कि वह वरमाला दुर्योधन के गले में ही डाले। लेकिन मित्रविंदा मन ही मन भगवान श्रीकृष्ण को चाहती थीं। यह बात जब भगवान श्रीकृष्ण को पता चली, तो उन्होंने मित्रविंदा को द्वारका लाकर विधि-विधान से विवाह कर उन्हें अपनी पटरानी बनाया।

सुभद्रा द्वारा सत्यता की पुष्टि

एक अन्य संदर्भ के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण को उनके बड़े भाई बलराम ने बताया कि मित्रविंदा के स्वयंवर का आयोजन केवल दिखावा है। असल में मित्रविंदा उन्हें प्रेम करती है, और उनके दोनों भाई दबावपूर्वक उसका विवाह दुर्योधन से कराना चाहते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण, इस बात की सत्यता जानने के लिए अपनी बहन सुभद्रा को लेकर अवंति (उज्जैन) पहुंचे। अतः श्रीकृष्ण ने सुभद्रा को मित्रविंदा के पास सत्यता पता करने भेजा। मित्रविंदा ने अपनी बहन सुभद्रा को अपने मन की बात बता दी।

विवाह और मंदिर की स्मृति

भगवान श्रीकृष्ण व मित्रविंदा के विवाह की स्मृति में बना मंदिर यहां अंकपात क्षेत्र में ही भैरवगढ़ मार्ग पर स्थित है, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

Advertisement
Show comments