गुरु के प्रकाश में आलोकित होता जीवन का दीप
चेतनादित्य आलोक
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा तिथि को ‘गुरु पूर्णिमा’ का पर्व मनाया जाता है। भारत में यह पर्व आध्यात्मिक या अकादमिक गुरुओं के सम्मान में, उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव प्रकट करने के लिए मनाया जाता है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गुरु पूर्णिमा का पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा के नाम
गुरु पूर्णिमा को कई नामों से जाना जाता है। आषाढ़ महीने में होने के कारण इसे ‘आषाढ़ पूर्णिमा’ अथवा ‘आषाढ़ी पूर्णिमा’ कहा जाता है। वहीं, महर्षि वेदव्यास जी का जन्म दिवस होने के कारण इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ एवं ‘वेदव्यास जयंती’ के रूप में भी मनाया जाता है। शास्त्रों में यह भी कहा जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने चारों वेदों की रचना की थी। इसी कारण से उनका नाम ‘वेदव्यास’ पड़ा। वैसे, इसका एक नाम ‘गुरु पौर्णिमा’ भी है।
गुरु का महत्व
मनुष्य के जीवन निर्माण में गुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दरअसल, वे हमें गढ़ने का कार्य करते हैं। इसलिए उनके प्रति हमें कृतज्ञता का भाव बनाए रखना चाहिए। हिंदू संस्कृति में गुरु को बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। मान्यता है कि गुरु के बिना मनुष्य का कल्याण संभव ही नहीं हो पाता। कबीरदास आदि कुछ संतों का तो यहां तक मानना है कि गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा होता है, क्योंकि गुरु ही मनुष्य को भगवान का ज्ञान कराते अथवा मिलाते हैं। यही नहीं, गुरु के बिना व्यक्ति को ब्रह्मज्ञान अथवा मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं हो सकती। सच कहा जाए तो गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से बाहर निकालकर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने में सक्षम होते हैं। वे अपने ज्ञान रूपी सूर्य से शिष्य के जीवन में अध्यात्म और कर्म का प्रकाश बिखेरकर जीवन को सफल बनाने का कार्य करते हैं। वे कर्म-अकर्म, ज्ञान-अज्ञान, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति, कर्तव्य और अधिकार आदि के महत्व एवं उपयोगिता का बोध कराकर मनुष्य को उचित मार्ग पर ले जाने का कार्य करते हैं।
वेदव्यास जी को समर्पित
हिंदुओं के लिए गुरु पूर्णिमा का पर्व अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है, जो हमारी गुरु-शिष्य की गौरवशाली परंपरा की यादें ताजा कराकर हमें आत्म-गौरव की अनुभूतियों से भर देता है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग अपने गुरुओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन श्रद्धापूर्वक गुरु की पूजा-सेवा करने से कुंडली में लगा ‘गुरु दोष’ अप्रभावी अथवा समाप्त हो जाता है। गुरु पूर्णिमा का दिन व्यास-पूजा के लिए भी विख्यात है। लोकप्रिय कोकिला व्रत भी इसी दिन किया जाता है। दूसरी ओर, गौरी व्रत का समापन गुरु पूर्णिमा के दिन ही होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लगभग 3000 ई. पूर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए प्रत्येक वर्ष इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। यह दिन वेदव्यास जी को समर्पित है। माना जाता है कि इसी दिन उन्होंने भागवत पुराण का ज्ञान दिया था। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार, गुरु पूर्णिमा उस तिथि का प्रतिनिधित्व करती है, जिस दिन भगवान शिव ने ‘आदि गुरु’ अथवा कहें कि ‘मूल गुरु’ के रूप में सभी वेदों के द्रष्टा सप्तऋषियों को ज्ञान प्रदान किया था। यही नहीं, योगसूत्र में ‘प्रणव’ अथवा ‘ओम’ के रूप में ईश्वर या परमात्मा को ‘योग का आदि गुरु’ कहा गया है।
सृष्टि के प्रथम गुरु
इस दिन महर्षि वेदव्यास जी की पूजा किये बिना गुरु पूर्णिमा की पूजा पूरी ही नहीं मानी जाती। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी भगवान श्रीहरि विष्णु के अंशावतार थे। यही नहीं, उन्होंने ही पहली बार मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान भी प्रदान किया था। इसलिए हिंदू संस्कृति में महर्षि वेदव्यास जी को सृष्टि के प्रथम गुरु की उपाधि प्राप्त है। ऐसे में, उनकी पूजा किये बिना भला गुरु पूर्णिमा की पूजा कैसे संपन्न हो सकती है।
स्नान-दान का फल
पूर्णिमा के दिन पवित्र जल में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को पुण्यफल की प्राप्ति होती है। वहीं, इस दिन दान करने का भी बड़ा महत्व है। इस दिन अन्न, वस्त्र, धन या अन्य जरूरी चीजों का दान जरूर करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गुरु पूर्णिमा के दिन गौ का दान करने से व्यक्ति को अक्षय-पुण्य मिलता है।
साधना और ध्यान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन प्रायः प्रत्येक व्यक्ति को साधना तो करनी ही चाहिए, लेकिन ध्यान भी अवश्य करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन सामान्यतः मनुष्य का मन विचलित और चंचल होता है। ऐसे में ध्यान और साधना करने से मन शांत और चित्त एकाग्र होता है, जिससे व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है।