ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति का पवित्र तीर्थ
हरियाणा स्थित कपाल मोचन तीर्थ एक प्राचीन और पवित्र स्थल है, जहां भगवान शिव, रामचंद्र और श्रीकृष्ण ने ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति पाई थी। औशनस नाम से प्रसिद्ध यह स्थान आस्था, तप और मोक्ष का प्रतीक है, जहां आज भी लाखों श्रद्धालु कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान कर पुण्य प्राप्त करते हैं।
कपाल मोचन हरियाणा राज्य के यमुनानगर जिले में बिलासपुर के पास स्थित प्राचीन तीर्थस्थल है। यह हिंदुओं और सिखों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। इसे गोपाल मोचन और सोमसर मोचन के नाम से भी जाना जाता है।
कपाल मोचन के नाम से प्रसिद्ध औशनस नामक इस तीर्थ में शुक्राचार्य ने तप किया था। शुक्राचार्य का नाम उशनस था। अतः यह स्थान उन्हीं की तपस्थली के नाम से अर्थात औशनस नाम से विख्यात हो गया। स्कन्द महापुराण के अनुसार औशनस तीर्थ अर्थात कपाल मोचन द्वैतवन में स्थित था। द्वैतवन, जिसमें बद्री और सिंधु नाम के दो उपवन थे, पवित्र सरस्वती और यमुना नदी के मध्यवर्ती क्षेत्र में स्थित था।
आदि काल में ब्रह्मा जी ने इसी द्वैतवन में यज्ञ किया था, जिसमें सभी देवी-देवताओं एवं ऋषि-मुनियों ने भाग लिया था। ब्रह्मा जी ने यज्ञ करवाने के लिए तीन हवन कुण्ड बनवाए थे, जो प्लक्ष, सोम सरोवर व ऋण मोचन के नाम से प्रसिद्ध हैं। इसी दौरान कलियुग के प्रभाव के कारण ब्रह्मा जी के मन में सरस्वती के प्रति तामसिक विचार उत्पन्न हुए। कालांतर में सरस्वती ने द्वैतवन में शंकर भगवान से शरण मांगी। क्रुद्ध शंकर भगवान ने ब्रह्मा का एक सिर काट दिया, जिससे भगवान शंकर को ब्रह्म हत्या का दोष लगा। सब तीर्थों में स्नान व दान इत्यादि करने से भी भगवान शिव के हाथ से वह चिन्ह दूर नहीं हुआ। घूमते-घूमते शंकर भगवान पार्वती सहित सोमसर तालाब के निकट देव शर्मा नामक ब्राह्मण के घर ठहरे। शंकर भगवान तो समाधि में लीन हो गए, परन्तु माता पार्वती को उनके ऊपर लगे ब्रह्म हत्या दोष की वजह से नींद नहीं आ रही थी।
रात्रि के समय गाय का बछड़ा अपनी माता से कहता है कि हे माता! सुबह यह ब्राह्मण मुझे बधिया करेगा, उस समय मैं उसकी हत्या कर दूंगा। गाय माता ने कहा कि हे बेटा! ऐसा करने से तुझे ब्रह्म हत्या का दोष लग जाएगा। बछड़े ने कहा कि माता, मुझे ब्रह्म हत्या के दोष से छुटकारा पाने का उपाय आता है। गाय और बछड़े की सारी बातें माता पार्वती ने ध्यानपूर्वक सुनीं।
सुबह होने पर ब्राह्मण ने बछड़े को बधिया करने के दौरान बछड़े ने उस ब्राह्मण की हत्या कर दी, जिससे उसे ब्रह्म हत्या का घोर पाप लगा तथा बछड़े व गाय का रंग काला पड़ गया। इससे गाय बहुत दुखी हुई। बछड़े ने माता से कहा कि हे माता, आप जल्दी से मेरे पीछे-पीछे आओ। गाय और बछड़े ने सोमसर अर्थात औशनस तालाब में पश्चिम दिशा से प्रवेश किया तथा पूर्व दिशा में निकल गए, जिससे उनका रंग पुनः सफेद हो गया। केवल पांव कीचड़ में तथा सींग पानी से ऊपर रहने के कारण उनका रंग काला ही रह गया। इस सारे दृश्य को भगवान शंकर और माता पार्वती ने देखा।
माता पार्वती ने शंकर भगवान से कहा कि इस तालाब में स्नान करने से आपका ब्रह्म हत्या का दोष भी अवश्य ही दूर हो जाएगा। भगवान शंकर ने तालाब में स्नान किया, जिससे उनका ब्रह्म कपाली का दोष दूर हो गया। इसके उपरांत उन्होंने सरोवर के पूर्वी तट पर आकर गाय व बछड़े को दर्शन दिए। भगवान शंकर और पार्वती के दर्शन से उनका उद्धार हो गया और उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति हुई। सरोवर के पश्चिमी तट पर राम आश्रम घाट के नजदीक आज भी गाय और बछड़े की काले रंग की तथा पूर्वी तट पर प्राचीन मंदिर में गाय व बछड़े की सफेद रंग की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस प्रकार भगवान शंकर के कपाली दोष से छुटकारा मिलने के कारण इस सोम सरोवर का नाम कपाल मोचन हो गया।
त्रेता युग में भगवान रामचन्द्र ने रावण का वध किया, जो सभी वेद-शास्त्रों के ज्ञाता होने के साथ-साथ ब्राह्मण भी थे। इस कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। मान्यता है कि यहां कपाल मोचन तीर्थ में भगवान रामचन्द्र ने स्नान किया तथा ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति पाई। द्वापर युग में महाभारत के युद्ध के पश्चात भगवान श्रीकृष्ण, पाण्डवों एवं बलराम के साथ यहां आए। पाण्डवों को पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने कपाल मोचन एवं ऋण मोचन सरोवर में स्नान किया। गार्गी गोत्र के दो तपस्वी ब्राह्मणों की हत्या करने से इन्द्र देव को भी ब्रह्म हत्या का दोष लगा। अपने गुरु बृहस्पति के बताने पर इन्द्र देव ने भी इस पवित्र तीर्थ में स्नान कर ब्रह्म हत्या के दोष से छुटकारा पाया। स्कन्द पुराण के अनुसार कपाल मोचन तीर्थ बहुत प्राचीन और ब्रह्म हत्या नाशक, संतान, धन प्राप्ति आदि सभी कामनाएं पूरी करने वाला तीर्थ है।
सिखों के दशम गुरु गोबिन्द सिंह भंगानी युद्ध के बाद यहां 52 दिन रुके। उन्होंने ऋण मोचन और कपाल मोचन में स्नान किया और अपने अस्त्र-शस्त्र धोए। कपाल मोचन और ऋण मोचन तीर्थों के बीच एक प्राचीन अष्टकोण गुरुद्वारा है। गुरु गोबिन्द सिंह ने कपाल मोचन के महन्त को हस्तलिखित पट्टा और ताम्रपत्र दिया, जो आज भी मौजूद है।
