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जीवन की लय

एकदा
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एक बार चीनी संत चुअंग तेउजु की पत्नी कुछ दिनों से अस्वस्थ थीं। अंततः उनका निधन हो गया। परंतु जब चुअंग तेउजु ने उन्हें मृत देखा तो उन्होंने पलभर के लिए भी कोई शोक व्यक्त नहीं किया। इसके विपरीत, वे अपनी कुटिया के बाहर बैठकर वाद्य यंत्र बजाने लगे और गाने लगे। यह दृश्य देखकर लोग चकित रह गए। जब यह समाचार चीन के सम्राट तक पहुंचा, तो वे स्वयं उन्हें सांत्वना देने वहां पहुंचे। लेकिन वहां का दृश्य देखकर सम्राट स्तब्ध रह गए। उन्होंने चुअंग तेउजु से पूछा, ‘तुमने तो हद कर दी! कम से कम इस शोक की घड़ी में मौन तो रह सकते थे। गाना-बजाना तो बिल्कुल अनुचित है!’ चुअंग तेउजु मुस्कुराते हुए उत्तर देने लगे, ‘मैं क्यों रोऊं? क्यों ग़मगीन हो जाऊं? मैं तो पहले से ही जानता था कि वह सदा जीवित नहीं रहेगी। यह शरीर तो नश्वर है। जब वह थी, तब हमने प्रेम और संगीत से जीवन जिया। अब जब वह नहीं रही, तो मैं उसे विदाई भी उसी प्रेम, शांति और संगीत के साथ क्यों न दूं?’ संत चुअंग तेउजु जीवन भर यही सिखाते रहे कि जीवन गतिशील है, इसकी लय को किसी भी परिस्थिति में टूटने न दो।

प्रस्तुति : मुग्धा पांडे

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