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समझ का फर्क

एकदा
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शहर के मुख्य बाजार में एक गैराज था, जहां एक मेकैनिक काम करता था। वह अपने काम में माहिर था, लेकिन उसमें एक कमी थी—वह अपने काम को बड़ा और दूसरों के काम को छोटा समझता था। एक दिन एक हार्ट सर्जन अपनी लक्जरी कार की सर्विस कराने उसके पास आए। बातचीत के दौरान मेकैनिक को पता चला कि वे एक प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ हैं। उसने कहा, ‘डॉक्टर साहब, हम दोनों का काम तो एक जैसा ही है। मैं कार का इंजन खोलता हूं, जांचता हूं, वॉल्व ठीक करता हूं और फिर सब कुछ जोड़ देता हूं—आप भी तो यही करते हैं।’ डॉक्टर मुस्कराए और बोले, ‘बिलकुल, लेकिन एक फर्क है। तुम यह सब काम बंद इंजन पर करते हो, मैं यह काम चल रहे ‘इंजन' यानी धड़कते दिल के साथ करता हूं।’ यह सुनकर मेकैनिक चुप हो गया। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ।

प्रस्तुति : सुरेंद्र अग्निहोत्री

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