बलिदानी नारी का वीर पति
चूण्डावत सेना लेकर युद्ध में जाने की तैयारी कर रहा था। उसका हाल ही में विवाह हुआ था। युवा पत्नी को छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा था। पत्नी ने उसे कर्तव्य-पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया, तो वह युद्ध में जाने के लिए तैयार हो गया। उसकी नवोढ़ा पत्नी ने टीका करके, आरती उतारकर उसे सहर्ष विदा किया। वह सेनानायक था, सो घोड़े पर चढ़कर सेना के आगे तनकर खड़ा हो गया। झरोखे में उसकी पत्नी खड़ी थी। सेनानायक ने पत्नी के पास संदेशवाहक भेजकर उससे स्मृति-चिह्न (सेहनाणी) मंगवाया। वीरनारी ने तत्क्षण पति की कमजोरी भांप ली। उसने तुरंत तलवार उठाई और अपना सिर काटकर पति के पास भेज दिया। इससे मूल्यवान प्रेरणादायक स्मृति-चिह्न शायद किसी पत्नी ने कभी नहीं दिया होगा। पति ने तत्परता से उसका सिर थामकर बालों से उसे अपनी गर्दन में बांध लिया और दोनों हाथों में तलवार लेकर शत्रु पर आक्रमण किया। सेनानायक ने सेना समेत पूरी शक्ति से दुश्मन को पछाड़ा और प्रमाणित किया कि वह वीर नारी का वीर पति है।
