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Suryakund Mandir: हरियाणा में एक ऐसा मंदिर जहां नहीं पड़ता सूर्यग्रहण का प्रभाव, त्रेतायुग से है संबंध

Suryakund Mandir: मंदिर की यह विशेषता विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत समागम प्रस्तुत करती
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सुरेंद्र मेहता, यमुनानगर, 17 दिसंबर

Suryakund Mandir: भारत के प्राचीन मंदिरों में इतिहास और आध्यात्मिकता का अनोखा संगम देखने को मिलता है। इन्हीं मंदिरों में से एक है हरियाणा के यमुनानगर जिले के अमादलपुर गांव में स्थित सूर्यकुंड मंदिर। यह मंदिर अपनी अद्वितीय विशेषता के लिए प्रसिद्ध है कि यहां सूर्य ग्रहण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सूर्य ग्रहण के दौरान जहां पूरे देश में मंदिरों के द्वार बंद कर दिए जाते हैं, वहीं सूर्यकुंड मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। इस अनोखी विशेषता के कारण देशभर से श्रद्धालु और साधु-संत यहां दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

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Suryakund Mandir: त्रेता युग से जुड़ा इतिहास

इस सूर्यकुंड मंदिर का संबंध त्रेता युग से माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह मंदिर सूर्यवंश के राजा मंधाता द्वारा स्थापित किया गया था। राजा मंधाता ने यहां सौभरी ऋषि को आचार्य बनाकर एक विशाल सूर्य यज्ञ का आयोजन किया था। कहा जाता है कि इस यज्ञ में स्वयं देवताओं ने भी भाग लिया था। यज्ञ के उपरांत राजा मंधाता ने यज्ञ भूमि को खुदवा कर उसमें जल भरवा दिया, जो आज के सूर्यकुंड के रूप में जाना जाता है।

Suryakund Mandir: यहां का पानी करता है रोगमुक्त

मंदिर के पवित्र कुंड को लेकर यह मान्यता है कि यहां स्नान करने से समस्त रोगों का नाश होता है। भारतवर्ष में इस प्रकार के कुल 68 कुंडों का उल्लेख मिलता है, लेकिन सूर्यकुंड मंदिर केवल दो स्थानों पर हैं एक हरियाणा के यमुनानगर के अमादलपुर में और दूसरा ओडिशा के कोणार्क में। यमुनानगर का सूर्यकुंड मंदिर सूर्यवंश से संबंधित है, जबकि कोणार्क का सूर्य मंदिर चंद्रवंश से जुड़ा हुआ है।

Suryakund Mandir: सूर्य ग्रहण के समय खुला रहता है मंदिर

सूर्य ग्रहण के दौरान जहां भारत के अन्य मंदिरों के कपाट बंद रहते हैं, वहीं सूर्यकुंड मंदिर के द्वार खुले रहते हैं। श्रद्धालु इस दौरान यहां विशेष रूप से आते हैं और सूर्य देव की आराधना करते हैं। साधु-संत कुंड के समीप बैठकर मंत्र जाप करते हैं।

मंदिर की यह विशेषता विज्ञान और अध्यात्म का अद्भुत समागम प्रस्तुत करती है। यह माना जाता है कि कुंड का आकार आयताकार होने के कारण सूर्य की किरणें कुंड के जल में समाहित हो जाती हैं और पुनः वापस नहीं जातीं। यह प्रक्रिया सूर्य के प्रभाव को कुंड के क्षेत्र में संतुलित बनाए रखती है, जिससे सूर्य ग्रहण का प्रभाव यहां शून्य हो जाता है।

Suryakund Mandir: सूर्यकुंड का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने भी अपने वनवास के दौरान यहां आकर स्नान और पूजा-अर्चना की थी। इस कुंड में स्नान करने वाले व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक शुद्धि का अनुभव होता है। श्रद्धालु यहां न केवल अपने आध्यात्मिक विकास के लिए आते हैं, बल्कि स्वास्थ्य लाभ और रोगों से मुक्ति के लिए भी कुंड के जल में डुबकी लगाते हैं।

मंदिर की एक और खासियत यह है कि यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह स्थान सूर्यवंशीय और चंद्रवंशीय परंपराओं के साथ भारत की प्राचीन वास्तुकला और संस्कृति का प्रतीक है।

Suryakund Mandir: सूर्यकुंड और कोणार्क के बीच संबंध

यमुनानगर का सूर्यकुंड मंदिर सूर्यवंशीय परंपरा का प्रतीक है, जबकि ओडिशा का कोणार्क मंदिर चंद्रवंश से जुड़ा हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि कोणार्क का सूर्य मंदिर भगवान कृष्ण के पुत्र साम्ब ने बनवाया था। साम्ब को सूर्य देव की आराधना से कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी, और इसी के उपलक्ष्य में उन्होंने यह मंदिर बनवाया।

Suryakund Mandir: श्रद्धालुओं का उमड़ता जनसैलाब

सूर्यकुंड मंदिर में विशेष रूप से सूर्य ग्रहण के दिन श्रद्धालुओं और साधु-संतों का बड़ा जमावड़ा होता है। लोग यहां सूर्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं और कुंड के जल में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

Suryakund Mandir: आध्यात्मिकता और विज्ञान का संगम

सूर्यकुंड मंदिर की विशेषता यह है कि यह आध्यात्मिकता और विज्ञान का अद्भुत समागम प्रस्तुत करता है। कुंड का अनूठा निर्माण और सूर्य की किरणों को वापस न जाने देने की प्रक्रिया इसे एक अनोखा स्थान बनाती है।

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