भरोसे से कामयाबी
लेखक जॉर्ज बर्नार्ड शॉ जो भी रचना किसी पत्र-पत्रिका को छपने के लिए भेजते, वह कुछ दिनों बाद अस्वीकृत होकर वापस लौट आती। लंबे समय तक उनकी रचनाओं की अस्वीकृति का यह सिलसिला चलता रहा। किन्तु दृढ़ निश्चयी शॉ को विश्वास था कि एक न एक दिन उनके लेखन की सराहना अवश्य होगी। उन्होंने हार नहीं मानी और अस्वीकृत होकर लौटी रचनाओं को एक बोरे में इकट्ठा करते चले गए। फिर एक दिन ऐसा आया जब उनकी एक रचना एक प्रसिद्ध पत्रिका में प्रकाशित हुई और पाठकों द्वारा खूब सराही गई। उस पत्रिका के संपादक ने जब शॉ से और रचनाएं भेजने का आग्रह किया तो उन्होंने कोई नई रचना लिखने के बजाय, बोरे में रखी हुई पुरानी अस्वीकृत रचनाएं एक-एक करके भेजनी शुरू कर दीं। रचनाएं छपती गईं और शॉ की लोकप्रियता बढ़ती गई। देखते ही देखते अन्य कई पत्रिकाओं के संपादक भी उनसे रचनाएं मंगवाने लगे। शॉ उन्हीं पुरानी अस्वीकृत रचनाओं को निकाल-निकालकर उन्हें भेजते रहे। अंततः एक दिन वह बोरा, जिसमें कभी अस्वीकृत रचनाएं भरी रहती थीं, पूरी तरह खाली हो गया— और जॉर्ज बर्नार्ड शॉ एक महान लेखक के रूप में प्रसिद्ध हो गए।