द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोइशिरो होंडा नामक एक युवक बिल्कुल दिवालिया हो गया। लेकिन उन्होंने इस असफलता से हार नहीं मानी। उन्होंने किसी तरह ऑटो पार्ट्स का प्लांट खोला परंतु दुर्भाग्यवश भूकंप ने उनके प्लांट को नष्ट कर दिया। एक दिन उनके मित्र सांत्वना देने के लिए उनके पास बैठे हुए थे। मित्रों की बात सुनकर होंडा मुस्कराए और बोले, ‘दोस्त, मैं भाग्य को नहीं मानता, केवल मेहनत और कर्म में विश्वास करता हूं। अभी भी मैंने कुछ खोया नहीं है बल्कि अब तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ ऐसा करने वाला हूं, जिससे पूरी दुनिया में तहलका मचने वाला है।’ इसके बाद होंडा ने एक बेकार जी.आई. इंजन लिया और उसे अपनी साइकिल में लगाकर मोटरसाइकिल बना डाली। इस तरह यह सिलसिला चल पड़ा तथा होंडा मोटरसाइकिल कम्पनी का जन्म हुआ। होंडा ने 1948 में जब अपनी पहली फैक्टरी खोली तो उसने अपनी पत्नी के गहने बेचकर स्पेयर पार्ट्स खरीदे। आखिरकारा होंडा की कठिन मेहनत एवं उनकी पत्नी का त्याग सफल हुआ और होंडा कम्पनी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कम्पनियों में से एक बन गई। प्रस्तुति : रेनू सैनी