द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोइशिरो होंडा नामक एक युवक बिल्कुल दिवालिया हो गया। लेकिन उन्होंने इस असफलता से हार नहीं मानी। उन्होंने किसी तरह ऑटो पार्ट्स का प्लांट खोला परंतु दुर्भाग्यवश भूकंप ने उनके प्लांट को नष्ट कर दिया। एक दिन उनके मित्र सांत्वना देने के लिए उनके पास बैठे हुए थे। मित्रों की बात सुनकर होंडा मुस्कराए और बोले, ‘दोस्त, मैं भाग्य को नहीं मानता, केवल मेहनत और कर्म में विश्वास करता हूं। अभी भी मैंने कुछ खोया नहीं है बल्कि अब तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं कुछ ऐसा करने वाला हूं, जिससे पूरी दुनिया में तहलका मचने वाला है।’ इसके बाद होंडा ने एक बेकार जी.आई. इंजन लिया और उसे अपनी साइकिल में लगाकर मोटरसाइकिल बना डाली। इस तरह यह सिलसिला चल पड़ा तथा होंडा मोटरसाइकिल कम्पनी का जन्म हुआ। होंडा ने 1948 में जब अपनी पहली फैक्टरी खोली तो उसने अपनी पत्नी के गहने बेचकर स्पेयर पार्ट्स खरीदे। आखिरकारा होंडा की कठिन मेहनत एवं उनकी पत्नी का त्याग सफल हुआ और होंडा कम्पनी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कम्पनियों में से एक बन गई। प्रस्तुति : रेनू सैनी
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।