चार धामों के कपाट बंद होने के आध्यात्मिक निहितार्थ
उत्तराखंड के चार धामों—बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री—के कपाट शीतकालीन विश्राम के लिए बंद होने का समय शुरू हो गया है। यह परंपरा धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक रस्मों और यात्रा अवधि को दर्शाती है। कपाट बंद होने की तिथियां विजयादशमी के दिन निर्धारित होती हैं, जिसके बाद मंदिरों में विशिष्ट पूजा-अर्चना और प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं। चारों धामों की यात्रा अवधि अलग-अलग होती है, जिसमें बदरीनाथ सबसे लंबी यात्रा का केंद्र है।
उत्तराखंड स्थित चार धामों में देव पूजा की शुरुआत 22 अक्तूबर से होगी। इस दिन गंगोत्री मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होंगे। इसके बाद 23 को यमुनोत्री और केदारनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होंगे। 25 नवंबर को बदरीनाथ मंदिर के द्वार बंद होने के साथ ही नारायण के अर्चक नारद होंगे।
परंपरानुसार विजयादशमी के दिन बदरीनाथ, केदारनाथ और यमुनोत्री मंदिर के कपाट बंद की तिथि और मुहूर्त तय होते हैं।
बदरीनाथ के कपाट बंद की परम्परा
बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद का दिन विजयादशमी के पर्व पर बदरीनाथ मंदिर परिसर में तय किया जाता है। इस दिन मंदिर परिसर में मंदिर के मुख्य पुजारी रावल, नायब रावल, बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी और वेदपाठियों की उपस्थिति में वैदिक पंचांग, ग्रह नक्षत्र देखकर मंदिर के कपार बंद करने की तिथि और मुहूर्त निश्चित किया जाता है। मंदिर के कपाट मार्ग-शीर्ष माह के प्रथम सप्ताह में बंद किए जाने का प्रावधान है।
पौराणिक मान्यता है कि मार्गशीष माह में रावल द्वारा भगवान की दो पूजा आवश्यक है। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद करने का जो भी उचित मुहूर्त निकलता है, उस तिथि को कपाट बंद कर दिये जाते हैं। यहां भगवान की पूजा का चक्र निर्धारित है। छह माह नर और छह माह देवर्षि नारद द्वारा श्री हरि की पूजा की जाती है।
उल्लेखनीय है कि मंदिर के कपाट बंद होने की तिथि से पांच दिन पूर्व कपाट बंद की पारम्परिक प्रक्रियायें प्रारंभ हो जाती हैं। इसके तहत सर्वप्रथम मंदिर परिसर में स्थित गणेश मंदिर के कपाट बंद किये जाते हैं। अगले दिन आदि केदारेश्वर और शंकराचार्य मंदिर के कपाट बंद होते हैं। अगले चरण में तीसरे दिन खड़क पुस्तिका पूजन के बाद वेद ऋचाओं का पाठ बंद किया जाता है। चौथे दिन मां लक्ष्मीजी की पूजा और कड़ाई भोग लगाया जाता है।
विराजमान होंगे उद्धव-कुबेर
बदरीनाथ मंदिर के गर्भगृह से उद्धव और कुबेर के चल विग्रह को बाहर लाया जाता है। कुबेर की डोली रात्रि विश्राम के लिए बामणी गांव आती है। जबकि उद्धव और आदि गुरू शंकराचार्य की गद्दी कपाट बंद के अगले दिन मंदिर परिसर से और कुबेर की डोली बामणी गांव से पाण्डुकेश्वर के लिए प्रस्थान करती है।
पाण्डुकेश्वर स्थित योगध्यान मंदिर के गर्भगृह में कुबेर व उद्धव के चल विग्रहों को स्थापित किया जाता है। जबकि शंकराचार्य की गद्दी नृसिंह मंदिर लायी जाती है। जहां कपाट खुलने तक गद्दी को शंकराचार्य मंदिर में रखा जाता है। कपाट बंद होने के साथ ही मंदिर का खजाना और गरुड़ जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर आ जाते हैं।
उद्धव की उत्सव मूर्ति
बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के अगले दिन उद्धव, कुबेर और शंकराचार्य की गददी योग ध्यान मंदिर पाण्डुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेगी। मंदिर के मुख्य अर्चक सहित मंदिर की परम्परा से जुड़े लोग रात्रि विश्राम बदरी पुरी में करते हैं। जबकि तीन अन्य धाम गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होते ही गंगा और यमुना की भोग मूर्ति मार्कण्डेय और खरसाली आती है। केदारनाथ की पंच मुखी डोली यात्रा रामपुर, गुप्तकाशी के बाद तीसरे दिन ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचती है।
भैया दूज को बंद होंगे कपाट
इस यात्रा काल में चारों धामों के कपाट खुलने की प्रक्रिया 30 अप्रैल से प्रारंभ हुई। अक्षय तृतीया के दिन यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिर के कपाट दर्शनार्थ खुले। इसके बाद 2 मई को केदारनाथ मंदिर और 4 मई को बदरीनाथ मंदिर के कपाट ग्रीष्मकाल के लिए खुले।
अब चारों धामों के कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके तहत सबसे पहले गंगोत्री मंदिर गोवर्धन पूजा के दिन 22 अक्तूबर को, यमुनोत्री मंदिर और केदारनाथ मंदिर के कपाट 23 अक्तूबर भैया दूज के अवसर पर बंद होंगे।
बदरीनाथ धाम 205 दिन की यात्रा
इस यात्रा काल में सबसे ज्यादा दिन बदरीनाथ धाम की यात्रा रहेगी। यह अवधि 205 दिन की है। इसके अलावा यमुनोत्री 176, गंगोत्री 175 दिन, और केदारनाथ यात्रा अवधि 174 दिन की रहेगी।