मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

बांसुरी की आत्मा

एकदा
Advertisement

एक बार श्रीराधा रानी ने प्रिय श्यामसुन्दर से विनम्रतापूर्वक कहा—‘आज आपकी मुरली बजाने की प्रबल इच्छा हो रही है। हमें अपनी मुरली दीजिए।’ श्यामसुन्दर मुस्कराए और बोले—‘प्रिये! यह मुरली आपसे नहीं बजेगी।’ राधारानी थोड़ी आश्चर्यचकित होकर बोलीं—‘क्या मुझे मुरली बजाना नहीं आता?’ श्यामसुन्दर ने कहा— ‘नहीं नहीं, आप तो चौंसठ कलाओं से सम्पन्न हैं। लेकिन यह मुरली तो विशेष है, यह केवल उसी से बजती है जो इसके रहस्य को जानता हो।’ राधारानी ने प्रयास किया। लेकिन मुरली से स्वर न निकला। वे बोलीं—‘श्याम! अवश्य ही तुमने इसमें कोई जादू कर दिया है।’ इतने में ललिता सखी वहां आ पहुंचीं। वे बोलीं—‘स्वामिनीजू! यह मुरली आपसे इसलिए नहीं बज रही क्योंकि आप इसमें कृष्ण नाम भर रही हैं।’ राधारानी ने पूछा—‘ललिते! तू भी श्यामसुन्दर के साथ मिली हुई है क्या?’ सखी बोलीं—‘नहीं स्वामिनी, मैं तो केवल सत्य कह रही हूं। यह मुरली केवल ‘राधे-नाम’ से ही बजती है। आप इसमें ‘राधे’ नाम भरिए, तब यह अवश्य बजेगी।’ राधारानी ने इस बार मुरली में ‘राधे’ नाम भरा। आश्चर्य! मुरली स्वयं बजने लगी, जैसे उसमें आत्मा आ गई हो। तब श्यामसुन्दर ने कहा कि यह मुरली भी राधे नाम की अनन्य सेविका थी, और राधे नाम ही उसका प्राण था।

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

Advertisement

Advertisement
Show comments