सद्वृत्त की सार्थकता
चरक की कक्षा में एक विद्यार्थी ने पूछा—‘गुरुवर, सद्वृत्त क्या है और उसका पालन आवश्यक क्यों है?’ गुरुजी बोले—‘आयुर्वेद और धर्मशास्त्रों में सद्वृत्त जीवन की सफलता और कल्याण का मूल आधार है। यह केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि प्रत्येक कार्य में सजगता, विवेक और नैतिकता का अभ्यास है। यह आत्महित, स्वास्थ्य, सामाजिक सम्मान और परलोक कल्याण का मार्ग है। सद्वृत्त का पालन करने वाला व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से संतुलित जीवन जीता है।’ विद्यार्थी ने फिर पूछा—‘क्या यह केवल आत्मसंयम तक सीमित है?’ गुरुजी बोले—‘नहीं। यह स्वास्थ्य, दीर्घायु और मानसिक संतुलन का सूत्र है। इसे अपनाने वाला व्यक्ति समाज में यश और सम्मान पाता है तथा परलोक में भी श्रेष्ठ फल का अधिकारी बनता है।’ शिष्य ने पुनः प्रश्न किया—‘जो अच्छे आचार समाज में प्रचलित हैं, पर शास्त्रों में नहीं मिलते, क्या उनका पालन भी करना चाहिए?’ गुरुजी ने उत्तर दिया—‘चरक कहते हैं कि जो लोक में श्रेष्ठ, पूजनीय और समाज द्वारा मान्य आचरण हैं, वे भी सद्वृत्त का हिस्सा हैं। आत्महित, सम्मान और परलोक कल्याण का यही मार्ग है। अतः विवेक और सजग स्मृति के साथ आचरण करना चाहिए।’