कण-कण में श्रीराम जग में व्यापे शृंगवेरपुर धाम
मान्यता है कि पिता दशरथ की आज्ञा मानकर राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्षों के लिए वनवास जाते समय शृंगवेरपुर गंगातट पर सिंसुपा वृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम किया। यहीं से केवट की नाव के जरिए गंगा पार किया। यहीं पर राम-केवट संवाद हुआ। शृंगवेरपुर में ही सीताजी ने गंगा मइया से वन गमन के कुशलता के लिए मनौती मानी थी। लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी में राम, लक्ष्मण और सीता पुनः शृंगवेरपुर आए। यहां सीताजी ने गंगा मइया की पूजा की। मान्यता यह भी है कि शृंगवेरपुर एकमात्र धार्मिक स्थल है जहां सीताजी और गंगा मइया का सीधा संवाद हुआ।
शिवा शंकर पाण्डेय
पौराणिक मान्यता है कि त्रेतायुग में पृथ्वी लोक पर प्रभु श्रीराम को लाने वाला शृंगवेरपुर धाम (सिंगरौर) है। ऐसा माना जाता है कि शृंगी ऋषि द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ के बाद ही अयोध्या में राम, लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। पुत्रेष्टि यज्ञ के उपरांत शृंगी ऋषि को राजा दशरथ ने दत्तक पुत्री शांता को दान दे दिया। शृंगी ऋषि और मां शांता देवी का मंदिर आज भी शृंगवेरपुर में मौजूद हैं।
प्रयागराज जिला मुख्यालय से पश्चिम-उत्तर दिशा, करीब 35 किमी दूर प्रयागराज-लखनऊ राजमार्ग और दिल्ली-कोलकाता नेशनल हाईवे (एनएच-19) के बीच गंगा नदी के तट पर मौजूद शृंगवेरपुर धाम वो जगह है, जो श्रीराम के जीवन में गहराइयों से जुड़ा है। यहां का अतीत ही नहीं, बल्कि वर्तमान भी गौरवशाली है। चौदह वर्ष के लिए वन जाते श्रीराम का शृंगवेरपुर गंगा तट पर प्रथम पड़ाव, रात्रि विश्राम, नाव द्वारा गंगा के उस पार जाना, राम-केवट संवाद जैसे कई प्रसंग जुड़े होने से शृंगवेरपुर धाम कई सदियों से आस्था का केंद्र रहा। अब यह केंद्र पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो रहा है। कच्चे ऊबड़-खाबड़ घाट और पगडंडी के रूप में पहचान रखने वाला सिंगरौर अब भव्य शृंगवेरपुर धाम बनता जा रहा है। पक्की सड़कें, हाईमास्ट रोशनी, साफ सुथरे घाट, पक्की सीढ़ियां, सरकारी गेस्ट हाउस, ध्यान केंद्र आदि बन गए। त्रेतायुग से चली आ रही आस्था, धीरे-धीरे भव्यता का आकार ले रही है।
कई धार्मिक ग्रंथों में यह भी उल्लेख मिलता है कि पिता दशरथ की आज्ञा मानकर राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्षों के लिए वनवास जाते समय शृंगवेरपुर गंगातट पर सिंसुपा वृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम किया। यहीं से केवट की नाव के जरिए गंगा पार किया। यहीं पर राम-केवट संवाद हुआ। शृंगवेरपुर में ही सीताजी ने गंगा मइया से वन गमन के कुशलता के लिए मनौती मानी थी। लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी में राम, लक्ष्मण और सीता पुनः शृंगवेरपुर आए। यहां सीताजी ने गंगा मइया की पूजा की। मान्यता यह भी है कि शृंगवेरपुर एकमात्र धार्मिक स्थल है जहां सीताजी और गंगा मइया का सीधा संवाद हुआ।
सीताकुंड और कुरई नाम से दोनों जगह यहां अभी भी है। यहां शृंगी ऋषि और मां शांता देवी का मंदिर भी मौजूद है। वन गमन के दौरान राम, लक्ष्मण और सीता ने जिस वृक्ष के नीचे रात्रि विश्राम किया, रामशयन स्थल और सिंसुपा वृक्ष के नाम से वह भी शृंगवेरपुर में मौजूद हैं। रोजाना सैकड़ों की संख्या में यहां श्रद्धालु आते हैं, स्नान आदि पर्वों पर यह संख्या हजारों में हो जाती है। शृंगवेरपुर धाम पर शोध करने वाले डॉ. भृगु कुमार मिश्र बताते हैं कि धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक दृष्टि से शृंगवेरपुर काफी समृद्धिशाली स्थल है। यहीं केवट को गले लगाकर समानता का सामाजिक संदेश भी श्रीराम ने दिया।
श्रीराम की ऊंची तांबे की मूर्तिपर्यटन केंद्र घोषित होने के बाद 5.50 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बना निषादराज पार्क आकर्षक का केंद्र है। मीलों दूर से दिखने वाली केवट को गले लगाते श्रीराम की 51 फीट ऊंची तांबे की मूर्ति ध्यान खींचती है। पार्क में पोडिएम, ध्यान केंद्र, पाथवे गैलरी है। शृंगी ऋषि, मां शांता देवी का मंदिर, राम शयन स्थल, सिंसुपा वृक्ष भी मौजूद हैं।