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शास्त्री जी की ईमानदारी

एकदा
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स्वतंत्रता आंदोलन के समय लाला लाजपत राय ने सर्वेंट्स ऑफ पीपुल सोसायटी की स्थापना की थी। यह सोसायटी स्वतंत्रता सेनानियों को आर्थिक मदद प्रदान करती थी। शास्त्रीजी के परिवार को भी इस सोसायटी द्वारा हर माह पचास रुपये की आर्थिक मदद दी जाती थी। उस समय शास्त्रीजी के परिवार में पत्नी ललिता शास्त्री, दो बेटियां और बेटे हरि थे। ललिता शास्त्री एक कुशल गृहिणी थीं। वे उन रुपयों से परिवार का पालन-पोषण करने के बाद कुछ रुपये बचा भी लेती थीं। शास्त्रीजी उन दिनों जेल में बंद थे। पत्र-व्यवहार के माध्यम से ही उनका संपर्क होता था। एक दिन उन्होंने ललिताजी से पूछा, ‘सोसायटी से मिलने वाले रुपयों में गुजारा हो जाता है।’ ललिताजी बोलीं, ‘हां, पचास रुपये में सभी आवश्यकताएं पूरी करने की कोशिश करती हूं बल्कि हर महीने दस रुपए की बचत भी कर लेती हूं।’ शास्त्रीजी ने उसी क्षण सर्वेंट्स ऑफ पीपल सोसायटी को एक पत्र लिखा कि हमारे परिवार की आवश्यकताएं मात्र चालीस रुपये में पूरी हो जाती हैं। इसलिए मेरे परिवार को चालीस रुपए भेजे जाएं।’ उनका यह पत्र पढ़कर सर्वेंट्स ऑफ पीपल सोसायटी के सभी सदस्य दंग रह गए। उनमें से एक सदस्य बोला, ‘यदि सभी नागरिक लालबहादुरजी जैसे हो जाएं तो देश को स्वतंत्र होने में तनिक भी देरी न हो।’

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