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नि:स्वार्थ भक्ति

एकदा
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एक भक्त रोज़ बिहारी जी के मंदिर जाता तो वहां उसे एक ज्योति दिखाई देती थी। सभी भक्त कहते, ‘आज बिहारी जी का शृंगार कितना अच्छा है!’ भक्त सोचता, ‘बिहारी जी सबको दर्शन देते हैं, मुझे क्यों एक ज्योति दिखाई देती है?’ एक दिन बिहारी जी से भक्त बोला, ‘क्या बात है कि आप सबको तो दर्शन देते हैं, पर मुझे दिखाई नहीं देते? अगर कल मुझे आपने दर्शन नहीं दिए, तो मैं यमुना जी में डूबकर मर जाऊंगा।’ उसी रात में बिहारी जी एक कोढ़ी के सपने में आए और बोले, ‘तुम्हें अपना कोढ़ ठीक करना है तो सुबह मंदिर के रास्ते से एक भक्त निकलेगा। तुम उसके चरण पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना, जब तक वह यह न कह दे कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें।’ अगले दिन जैसे ही वह भक्त निकला, कोढ़ी ने चरण पकड़ लिए और बोला, ‘जब तक आप यह नहीं कह देते कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें, तब तक मैं आपके चरण नहीं छोड़ूंगा।’ भक्त, वैसे ही चिंता में था वह झुंझलाकर बोला, ‘जाओ, बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक करें।’ इतना कहकर वह भक्त मंदिर चला गया। मंदिर में उसे बिहारी जी के दर्शन हो गए। भक्त बड़ा खुश हुआ और बिहारी जी से पूछने लगा, ‘अब तक आप मुझे दर्शन क्यों नहीं दे रहे थे?’ बिहारी जी बोले, ‘तुम मेरे निष्काम भक्त हो। आज तक तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा। इसलिए मैं क्या मुंह लेकर तुम्हें दर्शन देता? लेकिन आज तुमने रास्ते में उस कोढ़ी से कहा कि बिहारी जी तुम्हारा कोढ़ ठीक कर दें। इसलिए मैं तुम्हें दर्शन देने आ गया।’

प्रस्तुति : अक्षिता तिवारी

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