एक बार प्रवचन के दौरान बुद्ध ने एक रस्सी में गांठें लगा दीं और प्रश्न किया कि इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं, क्या यह वही रस्सी है, जो गांठें लगाने से पूर्व थी? एक शिष्य बोला, ‘गुरुजी ये हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। पर अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं जो पहले नहीं थीं; अंदर से यह वही है। इसका बुनियादी स्वरूप अपरिवर्तित है।’ बुद्ध ने कहा, ‘अब इन गांठों को खोलना है।’ बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक-दूसरे से दूर खींचने लगे। वह बोले-बोलो, इस प्रकार इन्हें खींचने से क्या ये गांठें खुल जायेंगी? नहीं-नहीं, ऐसे तो गांठें और भी कस जायेंगी। -एक शिष्य ने उत्तर दिया। बुद्ध ने कहा-ठीक है, अब बताओ इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा? शिष्य बोला-इसके लिए गांठों को देखना होगा कि इन्हें कैसे लगाया गया था, फिर इन्हें खोलने का प्रयास कर सकते हैं। यही तो मैं सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है? बिना कारण जाने निवारण असम्भव है। अधिकतर लोग बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं। महात्मा बुद्ध ने शिष्यों को समझाया कि जिस प्रकार रस्सी में गांठें लग जाने पर भी उसका बुनियादी स्वरूप नहीं बदलता, उसी प्रकार मनुष्य में भी बुराई आने से उसके अंदर से अच्छाई के बीज ख़त्म नहीं होते। प्रस्तुति : पूनम पांडे