समझदारी से प्राणरक्षा
प्राचीन जापान में एक सम्राट बहुत सनकी था। वह छोटी-छोटी गलतियों के लिए कड़ा और बड़ा दंड दे देता था। सम्राट के पास बीस फूलदानियों का एक अति सुंदर संग्रह था, जिस पर उसे बहुत गर्व था। एक दिन फूलदानों की नियमित सफाई के दौरान एक सेवक से एक फूलदानी टूट गई। सम्राट ने सेवक को फांसी पर लटकाने का हुक्म दे दिया। सम्राट से रहम की अपील की गई, किंतु वह नहीं माना। तब एक बूढ़ा आदमी दरबार में हाजिर होकर बोला, ‘सरकार! मैं टूटी हुई फूलदानी जोड़ने में सिद्धहस्त हूं। मैं उसे इस तरह जोड़ दूंगा कि वह पहले जैसी दिखाई देगी।’ सम्राट ने प्रसन्न होकर बूढ़े को अपनी शेष फूलदानियां दिखाते हुए कहा, ‘इन उन्नीस फूलदानियों की तरह यदि तुम टूटी हुई फूलदानी को भी बना दोगे तो मुंहमांगा इनाम पाओगे।’ सम्राट की बात समाप्त होते ही बूढ़े ने अपनी लाठी उठाई और सभी फूलदानियां तोड़ दीं। यह देखकर सम्राट क्रोधावेश में बोला, ‘बेवकूफ! ये तुमने क्या किया?’ बूढ़े ने दृढ़ता के साथ कहा, ‘महाराज! मैं जानता था कि इनमें से हर फूलदानी के पीछे एक आदमी की जान जाने वाली थी। मैंने अपने इंसान होने का फर्ज निभाते हुए उन्नीस लोगों के प्राण बचा लिए। अब आप शौक से मुझे फांसी की सजा दे सकते हैं।’ सम्राट को अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने बूढ़े तथा सेवक दोनों को माफ कर दिया।
